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शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास है प्रीति का मूलमंत्र




समाज का वह तबका जो शोषित, गरीब एवं असहाय है और जो अपने मूल अधिकारों के साथ जीने में असमर्थ है, उनके लिए प्रीति पाटकर की 'प्रेरणा' किसी वरदान से कम नहीं है। मुंबई जैसे शहर में उनके लिए आशा की एक किरण सामाजिक संस्था 'प्रेरणा' के रूप में जगमगा रही है। यहां मानव सेवा कार्य के जरिए व्यावसायिक यौनकर्मियों की दुर्दशा को सुधारने, उनके बच्चों को शिक्षित करने, लड़कियों की अवैध कारोबार को रोकने में लगीं प्रीति पाटकर अपने लक्ष्य के लिए तन-मन से समर्पित हैं।

अनुपम कार्य व सम्मान

सामुदायिक सेवा क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए हाल ही में श्रीमती प्रीति पाटकर (संस्थापक एवं कार्यकारी सचिव, प्रेरणा) को लक्ष्मीपत सिंघानिया आईआईएम लखनऊ की तरफ से 'यंग लीडर पुरस्कार' प्रदान किया गया। इस असाधारण सफलता को प्रीति विनम्रता से स्वीकार करते हुए कहती हैं कि 'मुझे खुशी है यह पुरस्कार पाकर, जिसका पूरा श्रेय मैं उन सभी माताओं को देना चाहूंगी, जिन्होंने निडरता से अपने बच्चों के अधिकार के लिए हमारे साथ मिलकर कदम बढ़ाया और मेरे सभी टीम सदस्य, जो करीब 22 साल से इस मिशन के लिए हमारा साथ अपना पूरा सहयोग दिया है। आगे वे कहती हैं, 'आज मेरे जीवन में जो कुछ परिवर्तन है, वह माता-पिता और पति की प्रेरणा प्रेरणा एवं सहयोग से संभव हुआ है।'

समाज सेवा के स्वतंत्र निर्णय
पुरानी लीक से हटकर नई राह बनाने वाले लोग ही कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते हैं। यह बात प्रीति पाटकर पर पूरी तरह खरी उतरती है। उन्होंने विश्व पटल पर सामाजिक संस्था 'प्रेरणा' के जरिए समाज में जो अनुपम कार्य कर रही हैं वह काफी सराहनीय है। शिक्षा-करियर के दौरान वर्ष 1986-90 मुंबई के कमाठीपुरा में निर्मला निकेतन कॉलेज से प्रीति पाटकर ने समाज सेवा का संकल्प लिया। उन्होंने वर्ष 1986 में सामाजिक संस्था 'प्रेरणा' का गठन कर व्यावसायिक यौनकर्मियों और उनके बच्चों को स्वस्थ्य शिक्षा और शोषण मुक्त जीवन जीने के अधिकार दिलाने की दिशा में कई कदम बढ़ाए हैं। प्रीति कहती हैं, 'मैंने बच्चों के लिए जो कार्य किया या समाज सेवा के लिए जो भी निर्णय लिया वह सटीक रहा है। मैं गर्व महसूस करती हूं कि कुछ लोगों को ही सही, जिनके साथ अन्याय हुआ है, मैंने उनको न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की है।' समाज सेवा और समाज के संबंध में प्रीति कहती हैं कि हम जब तक दूसरे लोगों से समाज को अच्छा बनाने की अपेक्षा करते रहेंगे, तब तक इस समाज का कुछ नहीं होने वाला है। समाज को बेहतर बनाने के लिए हमें खुद कोशिश करनी होगी।

समाज सेवा में चुनौतियां
कहते हैं, सफल इंसान के सामने चुनौतियां कम नहीं होतीं। प्रीति पाटकर भी चुनौतियों को स्वीकार करने के बाद ही सफलता हासिल कीं। उन्होंने रेडलाइट एरिया में रहने वाली महिलाओं और उनके बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बेहतरीन काम किया है। ऐसी महिलाओं को खुद शोषित होने और उनकी बच्चियों को वेश्यावृत्ति की दलदल में जाने से रोका है। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व बेहतर करियर की ओर बढ़ाया है। बकौल प्रीति 'जब हमने वेश्याओं और उनके बच्चों के लिए काम करना शुरू किया तो लोगों ने हमारा मजाक उड़ाया। लोग कहते थे कि आप उनके बच्चों की मदद कर उन्हें और प्रोत्साहन दे रही हैं। पहले इस कार्य के लिए कोर्ई फंड देने के लिए तैयार नहीं था। उनका कहना होता था कि अगर हम पैसे दे रहे हैं, तो क्या आप गारंटी है कि उनके बच्चे अच्छे ही बनेंगे?' आगे वह कहती हैं कि हमारी प्रेरणा ने इन चुनौतियों के सामने आगे बढ़कर काम किया है, इसका परिणाम आपके सामने है।

पढ़ाई से मिला विश्वास
मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली प्रीति पाटकर ने मुंबई के निर्मला निकेतन कॉलेज से समाज सेवा में स्नातक की शिक्षा ली। उसके बाद टीआईएसएस से समाज सेवा में ही स्नातकोत्तर की डिग्री लेकर इस क्षेत्र में अपने नये विचार और कुशलनेतृत्व क्षमता का परिचय दिया है, खासकर महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर। समाज सेवा के अपने बीस साल के अनुभव में प्रीति ने अपने सेवा कार्य से हर किसी को प्रभावित किया है। देश भर में महिला मुद्दों पर आयोजित कार्यक्रमों में वे कई बार हिस्सा ले चुकी हैं। महिलाओं व बच्चों के शोषण व संगठित अपराध के खिलाफ उनके द्वारा प्रस्तुत सुझाव व कार्य देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी चर्चा के विषय बने हैं। बकौल प्रीति 'मैं समाजसेवी हूं और समझती हूं कि हमारे व्यक्तित्व में समाज सेवा बिल्कुल फिट बैठता है। इसलिए मैं समाज सेवा की ओर मुखातिब हुई।' समाज सेवा के इस कार्य के लिए प्रीति, कॉलेज के योगदान को महत्वपूर्ण मानती हैं। वे कहती हैं, 'निर्मला निकेतन कॉलेज ऑफ सोसल वर्क डिपार्टमेंट के सभी लोगों का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मेरे जीवन में काफी महत्वपूर्ण रहा है।'

परिवार ने दी ताकत
बीस साल से समाजसेवा को समर्पित प्रीति पाटकर, आज एक समाज सेवक, प्रशासक, ममतामयी मां और पत्नी के किरदार को बखूबी निभा रही हैं। वह अपनी सफलता के लिए परिवार के योगदान को नहीं भूलती हैं। प्रीति कहती हैं, 'शायद मेरी यह इच्छा, इच्छा ही रह जाती, अगर परिवार का पूरा सपोर्ट नहीं होता। माता-पिता और पति का भरपूर मार्गदर्शन, सहयोग और दोनों बच्चों के प्यार ने हमें हर पल आगे बढ़ाया है।'

स्वयं को बनाया मजबूत
अपने व्यक्तिगत जीवन को काम के साथ-साथ कैसे बैलेंस करें? यह कोई प्रीति से पूछे, जब कभी प्रीति फुर्सत में होती हैं तो वह अपना पूरा समय परिवार के साथ बिताती हैं। वे कहती हैं, 'फुर्सत के क्षण में अपने बच्चों, पति और मां के साथ समय बिताना अच्छा लगता है।' बाकी समय को प्रीति संस्था के कार्यों को पूरा करने और किताबें पढऩे में लगाती हैं। वह फिल्म देखने की शौकिन हैं। जब कभी प्रीति मुश्किल में होती हैं तो आत्मचिंतन, ध्यान और योगा करती हैं। आस्था में वह पूरा विश्वास रखती हैं और दूसरों की सहायता करना अपना सबसे बड़ा धर्म मानती है। प्रीति महत्मा गांधी को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं। बकौल प्रीति 'मैं गांधीजी से बहुत प्रेरित हूं। सोचती हूं कि अकेले गांधीजी देश के लिए इतना बड़ा काम कर सकते हैं तो मैं क्यूं नहीं!'

जीवन की उपलब्धि
अपनी सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास विश्वास और दृढ़ संकल्प से आज प्रीति पाटकर ने उस मंजिल को तय किया है, जहां पहुंचना हर किसी का सपना होता है। वह अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि लोगों की विचारधारा में बदलाव को मानती हैं। प्रीति कहती हैं कि आज राष्टरीय और अंतर्राष्टरीय स्तर पर लोगों ने वेश्यावृत्ति जैसे विषय को महिलाओं का शोषण होना माना है। जहां समाज उनकी तरफ देखना तक पसंद नहीं करता था, आज अंतर्राष्टरीय स्तर पर इस मुद्दे पर चर्चा होती है। आज फंडिंग एजेंसियां इस समाज बेहतरी के लिए आगे आ रही हैं। उनके बच्चों को स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ-साथ अधिकारों के मामले में भी जागरूक करने की दिशा में सहयोग कर रही हैं।

समाज सेवा के मूल मंत्र
सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास, धैर्य और लगन को प्रीति समाजसेवा का मूल मंत्र मानती हैं। वह कहती हैं, 'अगर आप समाज को अच्छा देखना और अच्छा बनाना चाहते हैं तो अपने आस-पास के समाज में भागीदार बनकर बेहरत करने की कोशिश करें। वास्तविक संतुष्टि, शांति और दूसरों के लिए काम करने का आनंद ही कुछ अलग है।'


गुरुवार, 9 सितंबर 2010

जीवन सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी है : डॉ. किरन बेदी


सकारात्मक सोच के साथ जीवन के हर संघर्ष को जीने का हौंसला रखने वालों के लिए हर मुश्किल काम आसान होता है। देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी डॉ. किरन बेदी ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने हर मुश्किल काम को आसान बनाया है। 23 सालों से "नवज्योति इंडिया फाउंडेशन" के बैनर तले डॉ. किरन, नारी सशक्तिकरण का अनुपम अलख जगा रही हैं। एक खास मुलाकात के दौरान डॉ. किरन से हुईं बातचीत के मुख्य अंश...

आप एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने समय से पहले भारतीय नारी के बारे में लोगों की सोच बदली और महिला सशक्तिकरण की प्रतीक बनीं, ये सब कैसे संभव हुआ?
इसका श्रेय मेरे मां-बाप को जाता है। अगर मैंने लोगों की सोच बदली है, तो मेरे मां-बाप की सोच ऐसी थी। मेरे पिता जी का कहना था कि 'तुम अपना जीवन खुद बनाओ, तुम किसी से कम नहीं हो, आसमान अनंत है और पढ़ाई तुम्हारा असली धन है।'  मैं कहूंगी की जैसे पंडित नेहरू की सोच अपने बेटी के लिए समय से आगे थी, वैसे ही मेरे माता-पिता की सोच समय से आगे थी। जब मेरे पिता जी से पूछा गया कि उनकी सोच का प्रभाव कहां से आया था? वे कहते थे कि नेहरू जैसे अपनी बेटी के लिए सोचते थे, मैं भी अपनी बेटियों के लिए उसी तरह सोचता हूं। पिता की तरह हमारी मां की सोच समय से आगे थी। यही वजह है कि मेरी सोच समय से आगे रही।

आपकी संस्था "नवज्योति इंडिया फाउंडेशन" में महिलाओं के आत्मसम्मान व स्वावलंबन के लिए किस तरह का अभियान चलाया जा रहा है?
हमारी संस्था "नवज्योत"  उन महिलाओं के लिए काम करती है, जो अशिक्षित, गरीब, कमजोर, असहाय और पिछड़ी हुई हैं। मानसिक रूप से उनमें आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की कमी है। उनकी काबिलियत को कोई पहचानता नहीं है। हम उन महिलाओं में आत्मसम्मान के साथ-साथ आत्म विश्वास, धन कमाने की क्षमता और काबिलता प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं।

आज हर महिलाओं की अपनी-अपनी समस्याएं हैं, ऐसे में आप उन समस्याओं को हल कैसे करती हैं?
हर एक महिला का अपना घरेलू वातावरण होता है, लेकिन कुछ जरूरतें कॉमन होती हैं। आत्मसम्मान, धन, शांति, शिक्षा सबको चाहिए। ये सब चीजें हम उन्हें देते हैं। इन सब चीजों को व्यवस्थित करने की क्षमता उन्हें हम देते हैं। उसके बाद वह अपनी काबिलियत से समस्या को खुद हल करती हैं। इसके अलावा जिसे हेल्प चाहिए, उनके लिए हमारे फैमिली काउंसिलिंग सेंटर चल रहे हैं। वे परामर्श केंद्र से भी सलाह ले सकती हैं।

वर्तमान में आधुनिकीकरण, नारीवाद और महिला उत्थान जैसी तमाम बातें होती हैं, लेकिन आज महिलाओं की जो स्थिति है, उसके बारे में आपकी क्या राय है?
अंतरराष्टरीय स्तर पर अगर हम भारतीय महिलाओं की स्थिति की तुलना करें तो करीब 70 फीसदी महिलाओं की स्थिति भारत में अच्छी नहीं है। ना तो उनके पास हैल्थ इंश्योरेंस है, बच्चों को पढ़ाने के लिए धन और ना ही उनके पास आज़ादी है।
...तो इसके सुधार के लिए जरूरी उपाय क्या हैं?
इसका समाधान यही है कि आज जो दहेज प्रथाएं चल रही हैं, बंद होनी चाहिए। बेटी को पढ़ा-लिखा कर अपने पांवों पर खड़ा किया जाना चाहिए, ताकि वो अपनी काबिलियत को पहचान सके, खुद निर्णय ले सके और आत्मसम्मान से जी सके।

टीवी शो 'आपकी कचहरी' के जरिए कई लोगों को आपने उनका हक दिलाया है, एक तरह से देखा जाए तो आपने इस शो में अपनी भूमिका अदा कर नारी सशक्तिकरण की अलख जगा रही हैं, आप क्या कहना चाहेंगी?
इसका श्रेय स्टार प्लस को जाता है, उसमें भी उदयशंकर को जाता है, जिन्होंने इस प्रोग्राम के जरिए एक नयी सोच दी। दूसरा श्रेय स्वयं को जाता है कि जब उन्होंने मुझे जज के रूप में सेलेक्ट किया। उन्होंने स्पष्टï कहा कि तुम स्वतंत्र जज बनोगी, हम उसमें कोई दखंलदाजी नहीं करेंगे। उन्होंने मुझे कभी नहीं कहा कि आपको यह बोलना है या यह फैसला करना है। जब हमने निर्णय लिया तो वह बिल्कुल वर्तमान स्थिति के अनुसार लिया, जो होना चाहिए। उसमें कोई एक्टिंग नहीं थी, वह सौ फीसदी सही और नैचुरल था।

बतौर जज की भूमिका का अनुभव कैसा रहा?
इसमें मेरे लिए अनुभव कुछ अलग था। इतना भी अलग नहीं था, क्योंकि मैंने 35 साल ऐसे दफ्तर में बैठकर लोगों की बातें सुनी है। कई बार हमारे पास लोग ग्रुप में होते थे। मेरे लिए यह तो बिल्कुल आसान था। एक डंडा मारा कि कहना मान गये। यह शो बहुत ही यूनिक था। एयरकंडीशन में बैठकर फैसला करना और कोई जोर-शोर नहीं और एक घंटे में केस खत्म।


...तो आपने जज की भूमिका निभा लिया। अगर आपको राजनेता की भूमिका यानी राजनीति में आने का मौका मिले तो क्या...?

नवज्योति कबूल है, समाज सेवा कबूल है, राजनीति कबूल नहीं है।

राजनीति में रहकर भी आप समाज सेवा कर सकती है?
हां, जब मैं समझूंगी की अब मेरे लिए सही समय राजनीति में आकर समाज सेवा करने की तो मैं राजनीति में जाऊंगी, वह भी समाज सेवा के लिए, पॉवर के लिए नहीं।

"नवज्योति इंडिया फाउंडेशन"  के लिए जरिए आप गरीब महिलाओं एवं बच्चों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबन बना रही हैं, इसके अलावा और कोई योजना है?

कई क्षेत्र खुले हुए हैं और हर साल एक नया क्षेत्र खुल रहा है। कैदियों के बच्चों की ट्रेनिंग, हेल्थ केयर सेंटर और नशा मुक्ति का केंद्र भी चल रहे हैं। आज यह 'नवज्योति इंडिया फाउंडेशन, जिसे आप देख रहे हैं, इसके पीछे 365 दिन, 250 लोग, हर रोज़ कड़ी मेहतन करके इस जगह पर पहुंचे हैं। यहां कोई आराम से नहीं बैठता है।

आप अपने जीवन में कई मुकाम हासिल किए हैं और काफी लोकप्रिय भी रही हैं, भविष्य का कोई ऐसा सपना, जिसे पूरा करना बाकी है?
सपने नहीं, इस वक्त मैं हकीकतों में जी रही हूं। मेरी संस्थाएं, जिन्हें अब इंस्टीट्यूशन बनाना है। यही मेरा पैशन है। इसलिए मैं इस संस्था के लिए दिन-रात काम करती हूं, ताकि ये कॉलेज, पॉलिटेक्निक्स और टे्रनिंग इंस्टीट्यूट बन जाएं। गरीब महिलाओं और बच्चों के लिए एक बिजनेशन स्कूल बनाना है, होम केयर को एक प्रोग्राम बनाना है, यही मेरा लक्ष्य है और अब हम उन लक्ष्य पर कदम दर कदम आगे बढ़ रहे हैं।

एक सफल इंसान के पीछे किसी न किसी का हाथ होता है, आप अपनी सफलता के पीछे किसका हाथ मानती हैं?
मेरे सफलता के पीछे बहुत सारे हाथ हैं। परिवार में मेरे मां-बाप, बहन, मेरे पति और ससुराल वालों का पूरा सहयोग रहा है। मुझे लोगों से जितनी इज्जत और प्रेम मिला है, यह सब ईश्वर की कृपा है।

ईश्वर में आस्था!
100 प्रतिशत।

आप बहुमुखी प्रतिभा की धनी और जिंदादिल महिला हैं, अपने इस व्यस्ततम कार्य के साथ-साथ परिवार के लिए कैसे समय निकालती हैं?
हर चीज के लिए समय होता है। उसको आप मैनेज करना सीखते हैं, यही तो लाइफ मैनेजमेंट है। कुछ चीजें आप खुद करते हैं और कुछ चीजें आप करवाते हैं।

जब कभी आप फुर्सत में होती हैं तो क्या करना अच्छा लगता है?
मेरे पास हर चीज समय के लिए है, जो मैं सोचती हूं। कई बार मैं कहती हूं कि आज मेरा जीरो डे है, मुझे आज पढऩा है। किसी से मिलना नहीं, कोई डिस्टर्ब मत करना। यही फुर्सत है और यही मेरी हॉबी भी है।

अंतिम सवाल ...आज भी किरन बेदी में किसी कार्य को करने की उतनी ही ऊर्जा और जज्बा है, इसका रहस्य क्या है?
जब तक जीवन है, किसी लक्ष्य के लिए, किसी काम के लिए और किसी कर्तव्य के लिए है। जीवन नहीं है, तो कुछ भी नहीं। जीवन का मतलब सिर्फ अपने जीने के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी है। इसलिए जब तक जीवन है, ये सब चीजें आपके साथ चलती रहेंगी।





एक परिचय : किरन बेदी

अमृतसर (पंजाब) के एक छोटे से परिवार में 9 जून 1949 को पैदा हुईं किरन बेदी, अपने माता-पिता (प्रकाशलाल और प्रेमलता पेशावरिया) की चार बेटियों में से दूसरी बेटी हैं।

शिक्षा :
प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर के कॉन्वेंट स्कूल में हुई। अंग्रेजी साहित्य में उन्होंने स्नातक शिक्षा (1964-68) शासकीय कन्या महाविद्यालय, अमृतसर से पूरी कर राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर (1968-70) की उपाधि हासिल की। सन् 1988 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून में डिग्री प्राप्त की।
 1993 में उन्होंने राष्टरीय तकनीकी संस्थान, नई दिल्ली से उन्होंने सामाजिक विज्ञान में 'नशाखोरी तथा घरेलू हिंसा' विषय पर शोध करके पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की। सन् 2005 में किरन बेदी को 'डॉक्टर ऑफ लॉ'  की उपाधि से सम्मानित किया गया।


रुचि:
बहुमुखी प्रतिभा की धनी किरन बेदी को बचपन में टेनिस खेल से काफी लगाव रहा है। अपनी बहनों के साथ उन्होंने टेनिस में कई खिताब भी हासिल किए। ऑल इंडिया और ऑल एशियन टेनिस चैंपियनशिप की विजेता भी रहीं किरन बेदी को उस वक्त 'पेशावर बहनों'  के नाम से जाना जाता था।

पदभार
भारतीय पुलिस सेवा में पुलिस महानिदेशक (ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट) के पद पर पहुंचने वाली किरन बेदी एकमात्र पहली भारतीय महिला थीं, जिसे यह गौरव हासिल हुआ।
इसके अलावा किरन, डीआईजी, चंडीगढ़ गवर्नर की सलाहकार, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो में डीआईजी तथा यूनाइटेड नेशन्स में भी कार्य कर चुकी हैं।


उल्लेखनीय कार्य
किरन बेदी, अपने कार्यकाल के दौरान कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जिससे उनकी अलग पहचान प्रसिद्धि मिली है। तिहाड़ जेल में महानिरीक्षक के पद पर रहते हुए किरन ने वहां के कैदियों को सुधारने के लिए एक मिशन चलाया। उन्होंने कैदियों को योग, ध्यान, शिक्षा व संस्कारों का पाठ पढ़ाते हुए उन्होंने तिहाड़ जेल को 'तिहाड़ आश्रम' बनाया।

ट्रैफिक पुलिस कमिश्नर, नई दिल्ली, में रहते हुए किरन बेदी की पहचान 'क्रेन बेदी' के रूप में बनीं। उन्होंने नई दिल्ली में पार्किंग वाइलेशन करने पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गाड़ी को भी नहीं बक्शा।

पुरस्कार :
किरन को उनके उल्लेखनीय सेवाओं के कई राष्टरीय व अंतरराष्टरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें से प्रमुख पुरस्कार प्रेसीडेंट गेलेट्री अवार्ड (1979), वीमेन ऑफ दी ईयर अवार्ड (1980), एशिया रिजन अवार्ड फॉर ड्रग प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (1991), महिला शिरोमणि अवार्ड (1995), फादर मैचिस्मो ह्यूमेटेरियन अवार्ड (1995), प्राइड ऑफ इंडिया (1999) तथा मदर टेरेसा मेमोरियल नेशनल अवार्ड (2005) और 'रोमन मैग्सेसे अवार्ड' (1994) से सम्मानित किया गया।

किरन पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म
मशहूर ऑस्ट्रेलियाई फिल्मकार मेगन डॉनमेन ने किरन जी के जीवन के उतार-चढ़ाव और संघर्षों को एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'यस मैडम, सर' बनायी है। इस फिल्म में मशहूर हॉलीवुड अभिनेत्री हेलेन मिरेन ने सूत्रधार के रूप में अपनी आवाज दी है। इस फिल्म में किरन जी के संपूर्ण जीवन के सभी पहलुओं व अनुभवों को समेटने का प्रयास किया गया है।

समाजसेवा की पहल
किरन बेदी ने अपने शिक्षा-करियर के साथ-साथ सामाजिक सेवा से जुड़ी रही हैं। समाजसेवा में अपनी रुचि को मूर्त रूप प्रदान करते हुए उन्होंने सन् 1987 में "नवज्योति" तथा 1994 में 'इंडिया विजन फाउंडेशन" नामक गैर सरकारी संस्थान की स्थापना की। "नवज्योति इंडिया फाउंडेशन" के बैनर तले, नशाखोरी पर अंकुश लगाकर, गरीब व जरूरतमंद बच्चों, महिलाओं की सहायता कर किरन बेदी ने नारी सशक्तिकरण का अनुपम अलख जगाया है। किरन के इस संस्था को यूनाइटेड नेशन्स की ओर से "सर्ज सॉइटीरॉफ मेमोरियल अवार्ड" से भी नवाजा जा चुका है।
हम सलाम करते हैं डॉ. किरन के नवज्योति को, जिसने हजारों गरीब बेसहारे बच्चों एवं महिलाओं को शिक्षित कर आत्मसम्मान, आत्मबल और स्वरोजगार दिया, उन्हें आत्मसबल बनाया है और उनके मन में जीने की ललक पैदा की है।





शुक्रवार, 25 जून 2010

मैं वर्तमान में जीती हूं : डॉ. रीता बहुगुणा जोशी



देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपनी जड़ों की ओर लौट रही है। जमीन से जुड़ी कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी का ऐसा मानना है। उन्हें लगता है, कांग्रेस अपना खोया हुआ जनाधार पाने के लिए नीतियों व रीतियों का बिल्कुल सटीक इस्तेमाल कर रही है। राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी कुछ ऐसा ही करने में विश्वास रखते हैं। महिलाओं के बीच अपने खास अंदाज के लिए जानी जाती हैं रीता बहुगुणा जोशी। इन दिनों वे यूपी में अपने तूफानी दौरे की सफलता के लिए प्रयत्नशील हैं और गंभीर भी, 'मिशन-2012' को लेकर। एक खास मुलाकात के दौरान डॉ. रीता जी हुई बातचीत के मुख्य अंश...

आपने अपना करियर एक प्रोफेसर के रूप में शुरू किया। शिक्षा जगत से राजनीति में आने का मन कैसे बना?

मैं राजनैतिक परिवार की एक सदस्य हूं। माता-पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। पिताजी के मुख्यमंत्री रहे, परिवार में राजनितिक माहौल बना रहा। राजनीति सेवा के भाव से होनी चाहिए, परिवार में हम लोगों का ऐसा विचार था। पिताजी के देहांत के बाद उनके लाखों फॉलोवर्स और उनके साथी कार्यकर्ताओं को कोई लीड करने वाला नहीं था। उस समय मैं सोशल सर्विस से जुड़ी थी। 1974 में महिला संगठन से जुड़कर मैंने काफी महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम भी किया था। 1990 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद इलाहाबाद में सांप्रदायिक सौहाद्र् के लिए आगे आई। सन् 2003 में ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की अध्यक्ष के लिए चुनी गयी। इसके बाद 1995 में इलाहाबाद के मेयर का चुनाव जीती। कुल मिलाकर आप कह सकते हैं कि परिवार में राजनीतिक पृष्ठïभूमि और खुद की मेहनत, सामाजिक सक्रियता और कुछ पिताजी के मृत्यु के बाद उनके सहयोगियों का दबाव। महिला आंदोलन और आरक्षण जैसे मुद्दे के चलते मैं पूरी तरह से राजनीति से जुड़ गयी।

1995 में इलाहाबाद की मेयर के रूप में आपने अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत की। उस पहली पारी के दौरान आपके सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या रही?
जिस समय मैं मेयर बनी थी, उस वक्त महिला आरक्षण का प्रथम चक्र चल रहा था। मुझे कुछ भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और पुरुषवाद से संघर्ष करना पड़ा। हालांकि इस मामले में ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा, क्योंकि मैं यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर थी। और मुझे पब्लिक डीलिंग बहुत अच्छी तरह आती थी। कुछ ऐसे अधिकारियों से भिड़ंत हुई, जो महिलाओं के मातहत के तौर पर काम करना पंसद नहीं करते। इस वजह से प्रशासनिक स्तर पर सिस्टम कंट्रोल करने में थोड़ी दिक्कतें जरूर आईं, लेकिन बाद में सब कुछ जल्दी ही आसान हो गया।

वर्तमान में आप उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष हैं और पार्टी को आपसे काफी उम्मीदें है। उन उम्मीदों पर आप अपने को कहां देख रही हैं?
फिलहाल, मैं एक सिपाही के रूप में कड़ी मेहनत कर रही हूं। हमारी राष्टरीय अध्यक्ष सोनिया जी ने मुझ पर विश्वास करके हमारे गृह राज्य उत्तर प्रदेश में भेजा है। यकीनन, मुझसे बहुत काबिल लोग अपनी पार्टी में हैं। बहुत वरिष्ठï लोग भी हैं। बावजूद इसके, सोनिया जी ने मेरे नाम का चयन किया। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं अपने आपको को एक सफल कार्यकर्ता के रूप में देखना चाहती हूं। उन्होंने हमें जो सोच कर नेतृत्व का जिम्मा सौंपा है। उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप काम करना हमारा दायित्व है।

आगामी विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश कांग्रेस 'मिशन-2012' राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी को आप कहां देख रही हैं?

हम स्पष्ट बहुमत में आएंगे। इसमें कोई संदेह की गुंजाइश नहीं है। इस समय हमारी 'कांग्रेस यात्रा' चल रही है। कांग्रेस के जन्म का 125वां वर्ष भी है। आप यकीन नहीं करेंगे, जब से राहुल जी ने यह यात्रा शुरू की है। मुख्यमंत्री मायावती ने इसे रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन खुशी इस बात की है कि जब राहुल जी ने कांग्रेस का झंडा हमारे दस यात्रियों के हाथ में थमाए। उस समय पूरा माहौल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। वही दस लोग अलग-अलग क्षेत्रों में कांग्रेस की अलख जगाने के लिए जा रहे हैं। एक दिन में औसतन एक लाख से ज्यादा लोगों से हम लोग मिल रहे हैं। मैं यह समझती हूं कि इस यात्रा के दौरान हमें जिस तरह की रूझान देखने को मिल रही है और कांग्रेस को जनता का जैसा आर्शिवाद मिल रहा है। उसके आधार यह स्पष्टï है कि हम पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आएंगे।

महिला आरक्षण बिल को लेकर आपकी राय क्या है?
महिला आरक्षण होना चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं है। मैं सोनिया जी और डॉ. मनमोहन सिंह जी को बधाई देना चाहूंगी कि तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने इस बिल को पेश किया और उसे राज्यसभा से पारित करवाया। माननीय सोनिया जी महिला बिल के प्रति कटिबद्ध हैं। जो लोग महिला बिल का विरोध करते हैं, वे नारी विरोधी मानसिकता के शिकार हैं।

आज राजनीति में महिलाओं की भागीदारी जहां बढ़चढ़ कर देखी जा रही है, वहीं महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों के अपेक्षाकृत कम है। क्या कहेंगी आप?
बहुत सारे ऐसे प्रदेश हैं, जहां महिलाएं बढ़-चढ़कर वोट डालती हैं। दिल्ली, राजस्थान और यूपी में कई जगहों पर महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत ज्यादा है। उत्तर पूर्वी राज्यों में महिलाएं सबसे ज्यादा वोट डालती हैं। लेकिन उन राज्यों में महिलाओं को दिक्कत होती है, जहां पोलिंग स्टेशन बहुत दूर बने होते है।

राजनैतिक गतिविधियों के चलते आप अक्सर चर्चा में रहती हैं। इसकी कोई खास वजह?
मैं बहुत पारदर्शी और स्पष्टïवादी हूं। अपनी बात बेलाग तरीके से बोलती हूं। मुझे कांसपीरेसी करना नहीं आता। उत्तर प्रदेश में राजनीति कम, कूटनीति ज्यादा होती है। अब वक्त आ गया है कि प्रदेश में साफ सुथरी राजनीति हो और कांग्रेस ने इसके लिए कमर कस लिया है।

यूपी में पिछले कई के दौरान अपराध का ग्राफ बहुत तेजी से बढ़ा है। इसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानती हैं?
माफियाओं को, जिन्हें राजनीति में पहले भाजपा ने, फिर सपा और बसपा ने बढ़ावा दिया। आज राजनीति में अराजक तत्व बहुतायत संख्या में हैं। आपने खुद देखा होगा कि जिसने मेरा घर जलाया, उसे यूपी सरकार की तरफ से राजनैतिक संरक्षण दिया गया। मायावती ने उसके भाई को एमएलसी बना दिया। इस तरह कई मिसाल हैं, जहां अपराधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिस पर जितने ज्यादे जुर्म दर्ज हैं, वह उतना ही वह मुख्यमंत्री मायावती का प्रियपात्र है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के काफी करीब रहीं हैं। ऐसा क्या है रीता जोशी में?

मैं समझती हूं कि एक तो मैं महिला हूं और देश में महिला नेतृत्व की कमी है। सोनिया जी जो महिला सशक्तिकरण पर यकीन करती हैं, उन्होंने सक्षम महिलाओं को हमेशा प्रोत्साहित किया है। दूसरा यह कि मैं बहुगुणा जी की बेटी हूं और यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हूं। इसके अलावा मैं निर्दलीय उम्मीदवार बनकर भी पार्लियामेंट का चुनाव जीत चुकी हूं। मैं चार साल तक संयुक्त राष्टï्रसंघ की सलाहाकार रही। मुझे अंतराष्टï्रीय स्तर पर कई पुरस्कार भी मिले। और इन सबसे बड़ी बात 1998 से लेकर 2010 तक यानी 12 साल से मेरी एक नेता हैं। वह हैं सोनिया गांधी जी । मेरी सोनिया जी के साथ अत्यंत विश्वास और निष्ठा है। राहुल जी को मैं 21वीं सदी के भारतीय नायक के रुप में देख रही हूं। भविष्य में भारत देश उनके हाथ में सुरक्षित होगा, ऐसा मैं समझती हूं। शायद यही होगा मुझमें।

पार्टी सूत्रों की मानें तो आगामी विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो सीएम आप होंगी। क्या कहेंगी?
मैं अपना वक्त इस बात में जाया नहीं करती हूं। विधायक जिसकों चाहेंगे, उन्हें चुनेंगे। मेरा फर्ज है कि मैं ऐसा माहौल बनाने में दिन रात काम करती रहंू, जिसमें पार्टी को स्पष्टï बहुमत मिले। सीएम चुनने का अधिकार विधायकों का है और यह बात बहुत बाद में आती है।

आप अपने शिक्षा व राजनीतिक कॅरियर के दौरान समाज सेवा में सक्रिय रही हैं। भविष्य में लेकर आपकी कोई खास योजना?
मैंने 23 साल तक विश्वविद्यालय में पढ़ाया है। अब मैंने वीआरएस ले लिया है। मेरी भावी योजना 'मिशन-2012' राहुल जी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत हासिल करना है। फिलहाल, मैं इस मिशन पर लगी हूं।

आप अपने राजनीतिक व्यस्तता के बीच परिवार के लिए समय कैसे निकालती हैं?
पति हमारे इलाहाबाद में रहते हैं, बेटा दिल्ली में। मैं इलाहाबाद से दिल्ली आती-जाती रहती हूं। मेरे परिवार में बहुत एकता और प्यार है। हर रोज एक दूसरे से बात कर लेते हैं। हर महीने में पांच-सात दिन मुलाकात हो जाती है।

भविष्य का कोई ऐसा सपना, जिसे अभी पूरा करना बाकी है?
मैं वर्तमान में जीती हूं। मैं बहुत ज्यादा सपने नहीं देखती हूं।

गुरुवार, 18 मार्च 2010

राजनीतिक क्षेत्र में बढ़ते कदम दर कदम

 "अगर कोई को काम पूरी निष्ठा और लगन से किया जाए तो कोई असंभव नहीं है। हर रोज चुनौतियां सामने हैं, जरूरत है उससे निपटने की । समय के साथ चुनौतियां का सामना किया और रास्ता खुद व खुद बनता गया।"



भारतीय जनता पार्टी इंदौर (मध्यप्रदेश) की अग्रणी  महिला नेता श्रीमती सुमित्रा महाजन, राजनीतिक क्षेत्र में काफी ऊंचाईयों को तय किया है। 12 अप्रैल, 1943 में चिपलुन (जिला-रत्नागिरी, महाराष्ट्र) में पैदा हुईं श्रीमती सुमित्रा महाजन, बचपन से ही परिवार में रहकर मां-बाप की प्ररेणा से इंदौर यूनिवर्सिटी से एमए और एलएलबी करने के बाद वकालत से अपने करियर की शुरुआत की। इस बीच आप ने महिला मोर्चा, भारतीय जनता पार्टी (मध्यप्रदेश) की सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में जुड़कर बीजेपी का हमेशा के लिए दामन थाम लिया। 
महिलाओं के उत्थान, सामाजिक न्याय के लिए तत्पर श्रीमती सुमित्रा महाजन बचपन से कविता लिखना-पढऩा, संगीत सुनना, भारतीय खेलों की शौकिन, ड्रामा एवं सिनेमा देखना और गीत गानें में निपुण हैं। खेल के मैदानों के विकास एवं सुरक्षा के लिए काम कर चुकीं श्रीमती सुमित्रा जी साहित्यकला विज्ञान के क्षेत्र में भी देवी अहिल्या बाई होलकर पर आधारित प्ले में स्टेश शो भी कर चुकीं हैं। इतना ही नहीं मराठी कविता, रामायण व ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में लेक्चर व बहस में हिस्सा ले चुकी सुमित्रा जी आज भी आध्यात्मिक संगठन सानंद से सक्रिय रूप से जुड़ी हुईं हैं। चीन और इंडोनेशिया में महिलाओं पर आधारित कांफ्रेंश में बतौर डेलिगेट के रूप में भी हिस्सा ले चुकी हैं।
सन् 1982 में म्यूनिसिपल कारपोरेट, इंदौर में बतौर कारपोरेटर, 1984 में डीप्टी मेयर के रूप में कार्य चुकीं श्रीमती सुमित्रा महाजन,   छह बार लोकसभा चुनाव में विजयी रह चुकीं हैं। प्रतिभा की धनी श्रीमती महाजन वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की मध्यप्रदेश ईकाई की अध्यक्षा, मराठी एकादमी मध्यप्रदेश की अध्यक्षा, अहिल्या उत्सव कमेटी इंदौर की चेयरमैन, इंदौर में कंटेंपररी स्टडी सेंटर की चेयरमैन, पारसपुर सहकारी बैंक और महाराष्टरा सरकारी बैंक की सचिव, मध्यप्रदेश भारतीय महिला की सदस्य के रूप में कार्यरत हैं। प्रस्तुत है, श्रीमती सुमित्रा महाजन से बाचीत के कुछ अंश...

आपकी राजनीतिक करियर काफी अच्छा रहा है, दरअसल आप कैसी हैं?
मैं आम इंसान हूं। मेरा पारिवारिक बैकग्राउंड कानून से जुड़ा है। इसलिए मैंने एमए और एलएलबी करने के बाद वकालत से अपने करियर की शुरुआत की। साथ ही साथ बीजेपी से जुड़ी रही। इस कारण कुछ ऐसी बातें हैं, जो मुझमें रची-बसी हैं। मैं बहुत साफ कहती हूं, इसलिए शायद मेरी छवि कुछ ऐसी है। 
सबसे पहले आपने कब सोचा कि राजनीति आपकी कर्मभूमि होगी?
मैंने वकालत के साथ-साथ मध्यप्रदेश बीजेपी महिला मोर्चा में अध्यक्षा के तौर पर राजनीति शुरुआत की। सबसे पहले मैं 1989 में 9वीं लोकसभा चुनाव में विजय पायी। इसके बाद मध्यप्रदेश में मेरा राजनीतिक सफर का दौर आगे बढ़ता गया। 1995 में बीजेपी संसदीय बोर्ड सचिव के साथ-साथ मध्यप्रदेश की संसदीय बोर्ड की चेयर मैन के रूप में काम किया। इसके बाद 11वीं, 12वीं, 13वीं और 14वीं लोकसभा चुनाव में जीत हासिल हुई। 
आपके प्रेरणास्रोत ...
मेरा परिवार मेरे लिए प्ररेणास्रोत रहा है। इसलिए शुरू में मैंने एलएलबी करके वकालत की। राजनीतिक क्षेत्र में अटल जी ने मुझे काफी प्रभावित किया है। हाल की बात है जब मैं वाजपेयी जी को देखने अस्पताल गई तो बातचीत के दौरान श्री अटल जी ने कहा कि मैं इस बार की चुनाव में जरूर आउंगा, तो मैंने कहा कि आप जल्दी से ठीक हो जायें। मैंने सोचा कि आज भी अस्वस्थ होते हुए पहले जैसा ही बुलंद हौंसला है। 
आपने बीजेपी पार्टी को ही क्यों चुना?
भारतीय जनता पार्टी एक राष्टरीय पार्टी है। यह हमेशा से ही देशहित के लिए काम किया है और कर रही है। आज कांग्रेस अपनी पीठ महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के नाम पर थपथपाती रहती है, लेकिन उसे यह नहीं पता है कि उनके आदर्शों पर चलकर कितने लोगों का भला हो सकता है। बीजेपी हमेशा से आम जनता  की आवाज रही है। इससे अच्छी पार्टी दूसरी कोई नहीं है। 

बीजेपी में महिलाओं की सीट को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
बीजेपी मे महिलाओं को हमेशा से टिकट मिली है और मिलती रहेगी। 33 प्रतिशत का आरक्षण महिलाओं का रहा है।
राजनीति में पुरुषों का बोलबाला है, महिला होने के नाते आपको कोई परेशानी?
ऐसा कुछ भी नहीं। मैंने हर जिम्मेदारी को मेहनत, लगन और पूरी ताकत के साथ निभाया है। आज की महिलाएं ज्यादा जागरूक हैं। वे हर काम करने में सक्षम हैं। 
जो महिलाएं राजनीति में आना चाहती हैं, सुमित्रा महाजन की क्या राय है?
राजनीति ही नहीं, आज महिलाएं हर क्षेत्र में काफी आगे हैं। महिलाएं अपने अधिकार को जाना-पहचाना है। मैं कहती हूं कि महिलाएं किसी काम के लिए शार्ट कट रास्ता न अपनाये। किसी भी क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए कड़ी मेहनत और लगन की जरूरत है। महिलाएं अपने दम पर आगे आए और स्वयं में आत्मविश्वास पैदा करें। 
महिलाओं पर बढ़ते अपराध के कारण?
हमेशा से महिलाओं पर अत्याचार होते आये हैं। पहले समाज के सामने ऐसे अपराध उजागर नहीं हो पाते थे। आज की स्थिति यह है कि कोई भी घटना घटती है तो समाज के सामने आ जाती है। वजह यह है कि आज के समय में ज्यादा अपराध दिखाई देते हैं। जो महिलाएं शार्ट कट रास्ता अपनाती हैं, उनके लिए समस्या हर जगह है, इसलिए स्वयं की मेहनत और आत्मविश्वास की बदौलत आगे बढ़े, निश्चय ही उन्हें सफलता मिलेगी। 
आप को लोग ताई जी कहते हैं...
जी हां, यह लोगों का प्यार है। मध्यप्रदेश में लोगों ने हमें काफी प्यार दिया है। 


श्रीमति सुमित्रा महाजन

जन्म : 12 अप्रैल, 1943 (चिपलुन, रत्नागिरी)
पिता : श्री पुरुषोत्तम निलकंठ सेठ
माता : श्रीमती ऊषा
पति : श्री जयंत महाजन
शिक्षा : एमए, एलएलबी (इंदौर, मध्यप्रदेश)
पता : 8, जी.आर.जी.रोड,
नई दिल्ली- 110001

उपलब्धियां : 
1982-85 : कारपोरेट, म्युनिसिपल कारपोरेशन, इंदौर
1984-85 : डिप्टी मेयर, म्युनिसिपल कारपोरेशन, इंदौर
1989 : 9वीं लोकसभा चुनाव में विजयी
1990-1991 : स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में परामर्श समिति सदस्या, महिला मोर्चा भारतीय जनता पार्टी (मध्यप्रदेश) की अध्यक्षा के रूप में
1991 : 10वीं लोकसभा चुनाव में विजयी
1991-92 : 73वें  संविधान संशोधन कमेटी की सदस्या, प्रसव पूर्व लिंग जांच तकनीकी रेगुलेशन बिल 1991 की सदस्या। 
1991-96 : संचार मंत्रालय में परामर्श सदस्या 
1992-94 : मध्यप्रदेश बीजेपी की उपाध्यक्षा के रूप में काम किया।
1995-96 : बीजेपी संसदीय बोर्ड सचिव, इस बीच मध्यप्रदेश की संसदीय बोर्ड की चेयर मैन। 
1996 : ग्यारहवीं लोक सभा चुना में तीसरी बार विजयी। 
1996 : सचिव भारतीय जनता पाटी। 
1998 : 12वीं लोकसभा चुनाव में चौथी बार विजयी, मुख्य सचिव बीजेपी। 
1998-99 : में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत नशा सुधार, शिक्षा और महिला उत्थान, महिला अपराध-कानून जैसे संगठनों की सदस्या। 
1999 : 13वीं लोक सभा के लिए 5वीं बार विजयी। 
1999-2002 : मानव संसाधन विकास मंत्रालय में बतौर राज्य मंत्री के रूप में, 
2002-03 : संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय राज्य मंत्री, 3 से 4 पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय में राज्य मंत्री
2004 : 14वीं लोकसभा के लिए 6वीं बार विजेता। इसके अलावा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की चेयपर्सन के रूप में भी रहीं। लोक सभा चेयमैन पैनल की सदस्या, साहित्य कला विज्ञान के क्षेत्र में देवी अहित्या बाई होलकर पर आधारित प्ले में स्टेज शो। 
विदेश यात्रा- चीन और इंडोनेशिया में महिलाओं पर आधारित कांफ्रेंश में डेलिगेट बनकर हिस्सा लिया। 

बेबाक लेखनी और वाकपटुता की धनी : मुनव्वर सुल्ताना

आज की नारी न सिर्फ घर-परिवार और समाज में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं, बल्कि स्वयं के सपनों पर फैसले लेने और आर्थिक आज़ादी हासिल करने, अपने अधिकारों के लिए लडऩे और आत्मनिर्भर होने पर केंद्रित हैं। यह सच भी है कि जिन घरों में लड़कियां आत्मनिर्भर हो रही हैं, वहां समाज का स्तर और लड़कियों की जिंदगी में मूलभूत परिवर्तन देखने को मिल रहा है। वे दशकों पहले की तरह खिड़कियों के सामने बैठकर आसमान को पास आने का इंतजार नहीं करती हैं, बल्कि वे बाहर निकलकर आसमान को अपनी मुट्ठी में भरने की कोशिश में लगी हैं।
हम यहां बात कर रहे हैं दुनिया की पहली महिला उर्दू ब्लॉगर मुनव्वर सुल्ताना की, जिन्होंने अपनी बेबाक लेखनी और वाकपटुता के चलते समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और धार्मिक कर्मकांडों की पोल खोल रही हैं। ...और साथ ही साथ सामाजिक/शैक्षणिक जागरूकता एवं महिला सशक्तिकरण के लिए मजबूत संगठन बनाकर समाजसेवा कार्य में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रही हैं।
पुणे शहर में निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी मुनव्वर सुल्ताना जी बचपन से प्रतिभा की धनी रही हैं। उनका बचपन घर के पास एटॉमिक रिसर्च सेंटर, आर.के. स्टूडियो, डायमंड गार्डन के आस-पास खेलते हुए और वहां लगी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की मूर्ति से मुखातिब होते हुये बीता। माता-पिता के लाड़-प्यार और मैमूना बेगम (नानी) के स्नेह एवं सहयोग से सुल्ताना जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर के पास प्राथमिक पाठशाला से पूरी की। इसके बाद फिल्म अभिनेत्री स्वर्गीय ललिता पवार और स्वर्गीय माता मुमताज बेगम की स्नेह से उन्होंने उच्च शिक्षा (एम.ए., बी.एड (उर्दू) पूरी करने के बाद 'अंजुमन-ए-इस्लाम जुबैदा तालिब' स्कूल में बतौर शिक्षिका से अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने खुद को बचपन से ही साधारण मुस्लिम लड़की की तरह काले बुरक़े के जिरह बख्तर में कैद न होकर अपने को आज़ाद रखा। अपनी कार्यकुशलता के चलते उन्होंने अपने घर-परिवार के साथ-साथ प्रोफेशन को बखूबी निभा रही हैं। स्वयं मुनव्वर सुल्ताना कहती हैं कि 'मेरा स्कूल और मेरे बच्चें दोनों ही मेरा घर-परिवार है। मेरे परिवार और ब्लॉग के पथप्रदर्शक डॉ. रूपेश श्रीवास्तव का यह सहयोग है कि मैं आज इस मुकाम पर हूं।'
सुल्ताना जी अपने उर्दू ब्लॉग लंतरानी (http://merilantrani.blogspot.com) के माध्यम से उन सभी मुस्लिम औरतों को उनकी सामाजिक एवं पारिवारिक उत्तरदायित्वों के बारे में इंटरनेट के माध्यम से शिक्षित करने में लगी हैं, जो आज भी अंधविश्वासों और सामाजिक बंधनों में बंधी हुई हैं। वे कहती हैं कि 'मुझे खुशी होती हैं जब कोई हमारे द्वारा लिखे गये लेख पर बेबाक टिप्पणी करते हुये हमें धन्यवाद देता है। मैं उन लोगों का शुक्रगुजार हूं कि जो महिलाओं पर थोपे गये सामाजिक बंधनों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना चाहते हैं।'
'महाराष्ट्र राज्य पाठ्य पुस्तक निर्मित व अभ्यासक्रम संशोधन मंडल' की सम्मानित सहयोगी के रूप में कार्यरत सुल्ताना जी के राज्य में पाठ्यपुस्तकों के संशोधन सत्र में दिये गये सुझाव एवं योगदान महत्वपूर्ण रहे हैं। उनके देश और विदेश में आयोजित संगोष्ठिïयों में उर्दू व इंटरनेट विषय पर दिये गये सुझाव और कार्य काफी प्रशंसनीय रहे हैं।
वे कहती हैं कि 'मैं पहले यही सोचती थी कि मेरे जैसे लाखों की संख्या में लोग उर्दू में नस्तालिक लिपि में ब्लॉगिंग कर रहे होंगे। अपने देश में नहीं तो अन्य देशों में कोई महिला उर्दू ब्लॉगर जरूर होगी। जब इंटरनेट खंगाला तो नस्तालिक लिपि में कोई महिला ब्लॉगर नहीं मिला। मुझे खुशी इस बात की है कि मैं एशिया में ही नहीं, बल्कि दुनिया की पहली महिला उर्दू (नस्तालिक लिपि) ब्लॉगर हूं। आगे उन्होंने बताया कि हाल ही में लाहौर में पाकिस्तानी फीमेल ब्लॉगर्स एसोसिएशन का अधिवेशन हुआ। संस्था की अध्यक्षा साइमा मोहसिन(डान टी.वी.), सबा इम्तियाज़ (Erase and rewind), हुमा इम्तियाज़ (The world has stopped spinning), ताज़ीन जावेद (A reluctant mind)आदि ब्लॉगरों से यह पता चला कि नस्तालिक लिपि में ब्लॉगिंग एक अड़चन भरा चुनौतीपूर्ण कार्य है। अपने ब्लॉग की बारे में सुल्ताना कहती हैं कि 'मेरे ब्लाग "लंतरानी" की विषय वस्तु सामाजिक एवं शैक्षणिक है। इस पर हिंदी और अंग्रेजी जानने वालों के लिये उर्दू भाषा व नस्तालिक लिपि सिखाने के वीडियो ट्यूटोरियल्स भी शुरू कर चुकी हूं।
ब्लॉग पर वीडियो ट्यूटोरियल्स के रिजेल्ट पर खुशी इज़हार करते हुये कहती हैं कि 'भविष्य में उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी के बीच में अपने ब्लॉग के माध्यम से एक ऐसा पुल बना पाऊंगी, जो भावनात्मक दरारों को पाट सकेगा।' "महिलाओं के सामने आज कई चुनौतियां हैं, जिसका वे डटकर सामना कर रही हैं। मुझे खुशी हैं कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं। महिलाएं अपने अधिकार को जाना-पहचाना है।"

सकारात्मक सोच ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है : विन्नी सोनी


यह सच है कि महिलाएं आज लगभग हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर रही हैं। प्रतिस्पर्धा भरे इस माहौल में जहां हमारे समाज में एकल परिवार प्रणाली अपनायी जा रही है, वहीं महिलाएं न केवल घर-परिवार वरन व्यवसाय को संचालित व स्थापित करने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।  जी हां, हम बात कर रहे हैं बिरला सन लाइफ कंपनी की वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं ग्रुप लाइफ एंड पेंशन बिजनेस हेड विन्नी सोनी के बारे में, जिन्होंने स्वयं के विश्वास, सकारात्मक सोच व कड़ी मेहनत से अपने करियर को उस मुकाम तक पहुंचाया है, जहां पहुंचना हर किसी का एक सपना होता है। 

करियर में मिला सम्मान
बिजनेस सेक्टर में महत्वपूर्ण कार्य व योगदान के लिए टोरन्टो में एक महिला संगठन द्वारा विन्नी जी को 'एशियन रोल मॉडल' से नवाज़ा गया, इस असाधारण सफलता को विन्नी विनम्रता से स्वीकार करते हुए कहती हैं कि "मुझे बहुत खुशी है यह पुरस्कार पाकर, जिसका पूरा श्रेय मैं अपने गुरु स्वामी चिन्मयानंद को देना चाहूंगी, जिन्होंने मुझे इस काबिल बनाया है।" आगे वह कहती हैं कि "आज मेरे जीवन में जो परिवर्तन हुआ है या फिर जो कुछ मैंने जीवन में पाया है, वह गुरू की कृपा व प्ररेणा से है।"

पढ़ाई से मिला विश्वास
प्रतिभा की धनी विन्नी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से विज्ञान विषय में ग्रेजुएट शिक्षा के बाद कनाडा और अमेरिका के हार्वर्ड व व्हार्टन विश्वविद्यालय से मैनेजमेंट/मार्केटिंग के क्षेत्र में डिप्लोमा सर्टिफिकेट कोर्स पूरा किया। उन्होंने मार्केटिंग/मैनेजिंग के विभिन्न विभागों में अपने नये विचार और कुशलनेतृत्व क्षमता का परिचय दिया है। अपने बिजनेस करियर के 30 साल के अनुभवों में Financial underwriting, Business development, Marketing and Operations and Entire Business आदि विभागों में बखूबी काम कर चुकी हैं।  Mananam Books में बतौर असिस्टेंट एडिटर के पद पर काम कर चुकीं विन्नी, अपने हुनर से हर किसी को प्रभावित किया है। देश के विभिन्न कॉलेजों में आयोजित सेमिनार में भी हिस्सा ले चुकी हैं। उनके द्वारा प्रस्तुत सुझाव व कार्यों पर देश में ही नहीं, बल्कि विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

बिजनेस के स्वतंत्र निर्णय 
पुरानी लीक से हटकर नई राह बनाने वाले लोग ही कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते हैं। यह बात विन्नी पर पूरी तरह खरी उतरती है। उन्होंने विश्व पटल पर कंपनी व अपने बिजनेस को जो पहचान दी है, वह काफी सराहनीय है।
किसी बिजनेस को कैसे इंम्प्लीमेंट करें? इस पर विन्नी कहती हैं कि "यह बिजनेस साधारण है, लेकिन इतना आसान नहीं है, इसे मार्केट में लागू करना। आज के प्रतिस्पर्धा भरे बाजार में बने रहने व आगे बढऩे के लिए सबसे जरूरी है कि एक कुशल नेतृत्वकर्ता व अच्छे टीम सदस्यों की।" उनका मनना है कि वर्तमान में हमारी शिक्षा पद्धति और काम करने का जो सिस्टम है, दोनों में कोई तालमेल नहीं है। कोई काम कैसे करें, इस बात पर कोई ध्यान नहीं देता है, बल्कि क्यों होगा, इस बात पर अधिक महत्व दिया जाता है। 'कोई काम कैसे करें?'  इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं विन्नी द्वारा सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिये अपने टीम के सभी सदस्यों की कार्य कुशलता बढ़ाने और लक्ष्य को पूरा करने के लिए समय-समय पर उन्हें प्रोत्साहित करना। शायद इसलिए विन्नी के टीम को हर बार सबसे अधिक स्कोर मिलता है। उन्होंने अपने बिजनेस में टीम सदस्यों की कार्य कुशलता, स्वस्थ्य व्यवसाय व रचनात्मक गुणों के साथ कस्टमर व शेयर होल्डर्स का भी ध्यान रखा है।
वह इस सबन्ध में कहती हैं कि "बिजनेस करने का सही तरीका है कि कस्टमर के मुताबिक आप अपने प्रोडक्ट को बनाये। यानी कस्टमर से पहले यह पूछें कि उसे क्या चाहिए।" विन्नी की यह सबसे बड़ी सफलता है वह कस्टमर सेंट्रिक होकर अपने प्रोडक्ट्स का डिज़ाइन करती हैं। कनाडा की स्रूश्वज्ह्य के लिए मार्केट में विन्नी ने एक नये ब्रांड को स्थापित किया है, जिसका नाम है "SunAdvantage”।

परिवार ने दी ताकत
विन्नी, अपनी मां को अपना रोल मॉडल मानती हैं। बकौल विन्नी "जब मैं छोटी थी, तो मेरे पिता जी का देहांत हो गया और मां ही मेरी एक रोल मॉडल थीं। एक विडो होकर उन्होंने तीन बच्चियों को किस मुश्किल में पाला है, उनके रास्ते में जो भी मुसीबत आयी, उसका उन्होंने धैर्य के साथ सामना किया और वही धैर्य मेरे लिए एक मॉडल बन गया।"
15 साल से स्वयं सेविका के रूप में समर्पित विन्नी, आज एक सफल प्रशासक, अच्छी पत्नी और ममतामयी मां के किरदार को शानदार ढंग़ से निभा रही हैं। वह अपने तमाम व्यस्त कार्यों के बावजूद अपने करियर व परिवार को पूरा समय देती हैं। वह कहती हैं "मैं हर चीज़ को एक दायरे में रखती हूं, जब मैं परिवार के साथ होती हूं तो सिर्फ मैं परिवार को फोकस करती हूं और जब मैं काम पर होती हूं, तो मैं सिर्फ अपने काम को फोकस करती हूं।"

स्वयं को बनाया मजबूत
अपने व्यक्तिगत जीवन को काम के साथ-साथ कैसे बैलेंस करें? यह कोई विन्नी से पूछे, जब कभी विन्नी जी को फुर्सत मिलती है तो वह अपना पूरा वक्त रीडिंग में बिताती हैं। इसके अलावा वह योगा, ध्यान व मनन भी करती हैं। क्लासिकल म्यूजिक (इंडियन व वेस्टर्न) से विन्नी को काफी लगाव है। वह फिल्म देखने की बहुत बड़ी शौकिन हैं। जब कभी वह मुश्किल में होती हैं तो वह आत्मचिंतन, मनन करती हैं। धर्म और आस्था में भी वह पूरा विश्वास रखती हैं। बकौल विन्नी "यदि मैं कभी किसी चीज़ से अपसेट होती हूं, तो उससे दूर रहने और स्वयं को बैलेंस बनाये रखने के लिए आत्मचिंतन और योगा करती हूं।"

सफलता का मूल मंत्र
सकारात्मक सोच, कड़ी मेहनत व लगन को विन्नी सफलता की कुंजी मानती हैं। वह कहती हैं कि "यदि इंसान अपने सकारात्मक सोच के साथ तन, मन, उत्साह व लगन से निर्धारित लक्ष्य के प्रति केंद्रित होकर आगे बढ़े, तो सफलता/मंजिल संभव है।"
निश्चय ही विन्नी सोनी के इस सकारात्मक सोच से उन सभी लोगों को प्रेरणा मिलेगी, जो बिजनेस सेक्टर में कुछ नया करके अपने मंजिल को छूने का हौंसला रखते हैं।  

असहाय बच्चों की सेवा के लिए समर्पित 'मीनू दीदी'


 "हौंसला बुलंद हो तो रास्ते खुद व खुद बन जाते हैं"

"एक मोमबत्ती जिस तरह एक कमरे में पर्याप्त रोशनी दे सकती है, उसी तरह हर बच्चा अपने घर की मोमबत्ती है। हर बच्चे का घर एक कमरा है और उसमें एक जलती हुई मोमबत्ती उसका पर्याप्त रोशनी है। यहां हमारे पास रहकर आप किसी चौराहे की रोशनी न बनो या फिर किसी हाल की लालटेन। बड़े हालों में, बड़े चौराहों पर लालटेन की रोशनी बहुत कम होती है, लेकिन यहीं लालटेन की रोशनी एक कमरे के लिए पर्याप्त होती है। इसी तरह आप अपने घर की रोशनी बनों" यह कहना है सुश्री मृड़ाल कांत ऊर्फ 'मीनू दीदी' का। 

7 फरवरी, 1958 को लखनऊ में पैदा हुईं सुश्री मृडाल कांत ऊर्फ 'मीनू दीदी' आज नि:स्वार्थ पोलियो पीडि़त बच्चों की सेवा कर रही हैं। जनकपुरी में निवास कर रहीं मीनू का बचपन से गरीब और असहाय लोगों की सेवा करना उनका शौक रहा है। माता की ममता और पिता के प्यार ने उन्हें मृडालिनी प्रियदर्शीनी नाम दिया और जब उन्होंने रेडियों में उदघोषक के रूप में कार्य करना शुरू किया तो लोगों ने मीनू नाम रखा। घर-परिवार और बच्चों ने 'मीनू दीदी' के नाम से पुकारा और आज यही नाम मीनू को एक अलग पहचान दिया है।
14 साल की उम्र में पिता के देहांत होने के बाद मीनू को अपनी दो छोटी बहनों, एक भाई और मम्मी की सेवा मां बनकर की। उस समय मीनू 9वीं कक्षा में पढ़ रही थीं। पढ़ाई के साथ-साथ घर की पूरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए और एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने जेएनयू से रशियन भाषा में इंटर्नशिप कोर्स किया। कॉलेज पढ़ाई के दौरान मीनू के जीवन में एक घटना घटी, जिससे वह प्रेरित होकर अपने आपको असहाय बच्चों की सेवा कार्य के लिए समर्पित कर दिया।
मीनू को बच्चों की सेवा करने के लिए प्रेरणास्रोत बनी उन दिनों की बातें आज भी याद है, जिसे सुनकर उन्होंने तीन दिनों तक बेचैनी भरी रातें गुजारी थीं। बकौल मीनू, ''उन दिनों की बात है, जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी। कॉलोनी का गेटकीपर काफी दु:खी होकर अपने छोटी बच्ची को गोंद में उठाये खड़ा था। मैंने उसे देखकर बच्ची के बारे में पूछा और कहा कि इस बच्ची को इलाज के लिए किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते? तो गेटकीपर ने जवाब दिया कि 'इसे पोलियो की बीमारी है, शुक्र करो मैं इसे जिंदा रखा हूं।' उसकी यह बात मुझे झकझोर कर रख दिया। मुझे तीन दिनों तक नींद नहीं आयी। मेरे मन में यही बात आती रही कि इस समाज में मैं रहती हूं, तो मेरा भी समाज के प्रति फर्ज बनता है। मैंने यह फैसला किया कि अब हमें भी असहाय बच्चों की सेवा करनी है। शुरू में मैंने पोलियो बीमारी की जानकारी के लिए दिल्ली में चल रही विकलांग संस्थाओं में जाकर जानकारी ली। कॉलेज में बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ किसी तरह समय निकालकर इन संस्थाओं में जाकर पीडि़तों की सहायता करती थी। बाद में स्वयं कॉलोनी के समीप एक मंदीर के सामने पेड़ के नीचे 11 पोलियो पीडि़त बच्चों सेवा कार्य शुरू कर यह का शुरू किया।'
इस तरह से मीनू दीदी के करियर के साथ-साथ नयी जिंदगी की शुरूआत हुई। सन् 1988 से करीब दस साल तक उन्होंने काफी प्रयास किया। बच्चों की सेवा के लिए शुरू में उन्होंने सामाजिक संस्थाओं में जाकर काम किया। जब इससे उन्हें शांति नहीं मिली तो उन्होंने घूम-घूम कर सर्वे का काम किया। दिल्ली की स्लम गलियों में जब वह जाया करती थी तो उन्हें परिवार की तरफ से उन्हें यह सुनने को मिलता था कि 'दीदी आप ऐसा काम ना करो, आपको कभी कोई बीमारी हो सकती है।' इस बात से बेपरवाह मीनू ने अपना सेवाकार्य जारी रखा। ईश्वर में अटूट आस्था रखने वाली मीनू अपने जीवन के आदर्श स्वामी विवेकानंद और साईं बाबा के विचार को मानती हैं। वे बताती हैं कि साईं बाबा कहते हैं कि 'किसी की बुराई मत करो, सभी परिस्थियों में घिरे होते हैं। किसी को अपने को छोटा मत समझो। असहाय लोगों की सेवा करो, तुम नहीं करोगे तो और कोई दूसरा करेगा।' मीनू दीदी का मनना है कि देवी-देवताओं की पूजा करने के बजाए, डेढ़ दो सौ करोड़ लोगों की सेवा करनी चाहिए। जरूरी नहीं है कि साधु संयासी बनकर सेवा करें।
सन् 1988 में दिल्ली के जनकपुरी स्थित पोसंगी गांव के एक मंदीर में 11 पोलियो पीडि़त बच्चों की देखरेख का जिम्मा उठाकर मीनू ने अपने नि:स्वार्थ सेवा कार्य की शुरुआत की। इस कार्य के लिए उन्हें बच्चों के माता पिता और गांव के मुखिया को काफी समझाना बुझाना पड़ा। इतना ही नहीं कुछ लोगों ने मीनू के इस कार्य को दिखावा बताया। ...लेकिन मीनू का साहस और अटूट लगन को देखकर कॉलोनी के लोगों ने मदद के हाथ भी बढ़ाया। बच्चों की संख्या बढऩे पर उनकी सेवा के लिए मीनू ने 1998 से द्वारका स्थित बस्ती विकास केंद्र, सेक्टर-3 में उन्होंने 'प्रेरणा निकेतन संघ' की स्थापना किया। बकौल मीनू, जनकपुरी के निगम पार्षद संजय पुरी के प्रयास से उन्हें द्वारका में एमसीडी ने बारात घर बच्चों की सेवा के लिए मिला। विधायक जगदीश मुखी और अंजलि अग्रवाल का भी पूरा सहयोग रहा है। इसके अलावा पोलियो पीडि़त बच्चों की मुफ्त सर्जरी करने वाले सफदर जंग हास्पिटल के हेड ऑफ डिपार्टमेंट, आर्थोपेडिक डॉ. विदूर कुमार जैन का योगदान महत्वपूर्ण रहा है, जो आज भी नि:शुल्क सेवा कार्य करते आये हैं। स्वंय सेवी संस्थाओं में ध्यान फाउंडेसन का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है, जिनकी सहयोग से ही यह सेवाकार्य चल रहा है।' हालांकि संस्था की स्थाई जमीन न होने की वजह से अब तक उन्हें कोई सरकारी सहायता नहीं मिली। लेकिन मीनू के इस काम की सराहना करते हुए यह कहा गया कि 'हमारी मीनू दीदी का यह काम हैं, इसका हाथ हमें मजबूत करना है।' इस बात को याद कर मीनू के आंख में आंसू आ जाती है। वह कहती हैं कि 'प्रभु की कृपा है कि हमें किसी तरह की परेशानी नहीं है।'
मीनू ने बच्चों की सेवाकार्य के पीछे विवाह जैसी बात को भी पीछे छोड़ दिया। हालांकि कॉलेज लाईफ के दौरान उनके शादी के प्रस्ताव भी आये, लेकिन उन्होंने बच्चों को अपना परिवार समझकर शादी जैसी बात को हमेशा के लिए मन से निकाल दिया। वे स्वयं कहती हैं कि 'यही बच्चे हमारे हाथ पैर हैं, इनकी सेवा करना हमारा कर्तव्य है।' घर-परिवार और स्वयं अपनी जरूर पूरी करने के लिए ऑल इंडिया रेडियो में कैजुअल आर्टिस्ट एवं एलाउंसर के रूप में कई सालों तक नौकरी की। इस नौकरी से अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ पोलियो पीडि़त बच्चों के लिए कई कार्यक्रम किये। उन्होंने अपने पिता द्वारा जमा किये गये करीब दो लाख रुपये बच्चों की सेवा में लगा दिया। बच्चों को स्कूल ले जाने के लिये बस खरीदा। आज दिल्ली यूनिवर्सिटी में कैरियर काउंसलर के पद पर कार्यरत हैं। दिन के समय नौकरी और दूसरे कामों को पूरा करके रात को बच्चों की देखभाल करती हूं। जिस दिन छुट्टी होती है, उस दिन पूरा समय इन्हीं बच्चों के साथ रहती हैं। बच्चों की देखभाल के बारे में पूछे जाने पर वे बताती हैं कि बच्चों के लिए हमारा संदेश होता है कि 'बच्चों यह तुम्हारा घर है, इसे सुरक्षित और साफ सुथरा रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है।' यही वजह है कि आज तक उन्हें बच्चों से भी किसी तरह की परेशानी नहीं उठानी पड़ी।
प्रेरणा निकेतन की सफलता को लेकर कहती मीनू कहती हैं कि यहां जो भी बच्चा इलाज के लिए आता है, जब वह स्वस्थ्य होकर अपने घर जाता है तो वहीं सबसे बड़ी उपलब्धि बनती है। इन बच्चों के लिए मीनू दीदी का संदेश होता है कि "एक मोमबत्ती जिस तरह एक कमरे में पर्याप्त रोशनी दे सकती है, उसी तरह हर बच्चा अपने घर की मोमबत्ती है। हर बच्चे का घर एक कमरा है और उसमें एक जलती हुई मोमबत्ती उसका पर्याप्त रोशनी है। यहां हमारे पास रहकर आप किसी चौराहे की रोशनी न बनो या फिर किसी हाल की लालटेन। बड़े हालों में, बड़े चौराहों पर लालटेन की रोशनी बहुत कम होती है, लेकिन यहीं लालटेन की रोशनी एक कमरे के लिए पर्याप्त होती है। इसी तरह आप अपने घर की रोशनी बनों"
भविष्य की योजनाओं को लेकर गंभीर मुद्रा में होकर मीनू दीदी कहती हैं कि 'मैं अनाथ बच्चों और बुजुर्गों की सेवा करना चाहती हूं, जिन्हें सबसे अधिक प्यार की जरूरत होती है। बच्चों को बड़े लोगों की जरूरत होती है, उन्हें संभालने की जरूर होती है। ...और बुजुर्गों को बच्चों का प्यार मिले, क्योंकि वे मजबूर होते हैं। 

व्यक्तिगत परिचय
जन्म : 7 फरवरी, 1958 (लखनऊ)
माता : स्व. श्रीमती अनिल सक्सेना
पिता : स्व. श्री रामबिहारी लाल सक्सेना
भाई : श्री राकेश कुमार सक्सेना
बहन : रजनी सक्सेना, स्व. अनीता सक्सेना
निवास स्थान : ए-5, बी-121, जनकपुरी, दिल्ली।

बुजुर्गों की रोशनी की किरण श्रीमती किरण चोपड़ा



अगस्त, 1958 में पंजाब के लुधियाना शहर में पैदा हुईं श्रीमती किरण चोपड़ा, नि:स्वार्थ भाव से बुजुर्गों की सेवा में समर्पित हैं। किरण जी बचपन से ही बड़ों की सेवा, उनके आदर्शों एवं आशीर्वाद के सहारे चलकर, आज समाज का आईना बन चुकीं हैं। जिनकी उंगलियों के सहारे बच्चे चलना सीखते हैं, जिनके कंधों पर बैठकर देश-दुनिया को देखते हैं। वही बच्चे जब ज़वान होकर, अपने पांव पर खड़े हो जाते हैं और अपने बुजुर्ग मां-बाप की भावनाओं की अनदेखी करते हुए, उनसे आंखे फेर लेते हैं। ऐसे में असहाय हो चुके बुजुर्गों को रोशनी की किरण दिखा रही हैं- श्रीमती किरण चोपड़ा।  पंजाब यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र से एम.ए. करने के बाद, घर-परिवार की जि़म्मेदारी संभालते हुए भी किरण जी 'वरिष्ठï नागरिक केसरी क्लब' की बतौर संचालिका एवं डायरेक्टर पंजाब केसरी दिल्ली में कार्यरत हैं। अभिनय और वक्ता में गोल्डमेडलिस्ट श्रीमती किरण चोपड़ा, बतौर संस्थापिका 'वृद्ध केसरी रोमेश चन्द्र केसरी ट्रस्ट' एवं सामाजिक न्याय आधिकारिता की सदस्या के रूप में भी कार्यरत हैं। 


प्रस्तुत है, श्रीमती किरण चोपड़ा से बातचीत के कुछ अंश... 


इंटरव्यू के पहले, मैंने आपका बायोडाटा देखा, दिलचस्प बात यह है कि आपने राजनीति शास्त्र में मास्टर की डिग्री ली हैं, राजनीति शास्त्र में डिग्री लेने के बाद भी सामाजिक सेवा में रूचि?

मैं मध्यम परिवार में जन्मी-पली, मेरी मां से मिले संस्कार और सासु मां से मिले आदर्श आज भी मेरे साथ हैं। बड़ों की सेवा करना, हमें बचपन से ही पारिवारिक संस्कार में मिला है। मेरी शादी भी ऐसे संस्कारों वाले परिवार में हुई, जहां तीन पीढिय़ां 'वन किचिन फैमिली'  में बड़े प्यार से रहती थीं। ससुर जी को अपने पिता की सेवा करते और उनके आगे नतमस्तक होते देखा। अपने पति को अपने दादा, अपने पिता की सेवा करते और सासु मां को पूरे परिवार के प्रति फर्ज निभाते देखा है। 
एम.ए. की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर-परिवार की जि़म्मेदारी ज्यादा बढ़ गई। मैंने अपने पैरेन्ट्स और ससुराल वालों के इच्छा के अनुसार काम किया। इस बीच मैंने देखा कि बुजुर्ग के बीमार होने पर यह कहा जाता है कि इसने तो अपना जीवन जी लिया, एक दो या पांच साल की जि़न्दगी बची होगी, शांति से कट जाने दो। उनकी तकलीफों को बुढ़ापे की बीमारी बताकर उन्हें अनसुना और अनदेखी कर दिया जाता है। यह देखकर मुझे काफी दु:ख होता था कि एक भेदभाव रवैया बच्चों और बुजुर्गों के प्रति अपनाया जाता है। उस समय मुझे लगा कि केवल मैं बुजुर्गों के लिए कुछ कर पायी तो मेरा जीवन सफल हो जायेगा। इसी सपने को पूरा करने के लिए मैंने 'वरिष्ठï नागरिक केसरी क्लब' की सहायता से बुजुर्गों की सेवा करनी शुरू की। 
"वरिष्ठ नागरिक  केसरी क्लब" का गठन कब हुआ?
आदरणीय लाला जगत नारायण जी, रमेश जी का सपना और अश्विनी जी की प्रेरणा से मैंने अपने दिल की बात सुनी और अक्टूबर, 2005 को 'वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब' की स्थापना की। मैंने यह संकल्प लिया कि जिन लोगों ने अपना सारा जीवन घर-परिवार और समाज को दिशा देने, खुशहाल बनाने में लगा दिया, वे बुढ़ापे में हताश-निराश, असहाय और अकेले न रह जाये, उन्हें इस क्लब के जरिये जीना-हंसना सिखाया। उनके अंदर आत्मविश्वास और हौंसला बढ़ाया। उनमें इस भावना का संचार पैदा किया, अब वही कहते हैं कि हम किसी से कम नहीं। बुजुर्गों के लिए समर्पित भाव से यह एक सार्थक अभियान देखते ही देखते एक देश ही नहीं, विदेशों में एक लहर बन गया है। इस अभियान में आज हजारों की संख्या में हर तरह के सदस्य जुड़े हैं। 
'संगठन' के बजाय 'क्लब' नाम रखने का उद्देश्य?
हमारे देश में तमाम एनजीओ काम कर रहीं हैं, जिनमें से कुछ तो सही काम कर रही हैं, बाकी सिर्फ नाम के हैं। क्लब का उद्देश्य, बुढ़ापे जैसे एक मुद्दे के प्रति लोगों में सार्थक मानसिकता तैयार करना है। बुजुर्ग अपने अकेलेपन को मिटाने और अपना अच्छा समय बिताने के लिए यहां आते हैं, क्योंकि यह एक क्लब है। हम समय-समय पर लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करते रहते हैं, जैसे मनोरंजन, कानूनी सहायता तथा स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन करते हैं। हमारा मिशन सबको वृद्धाश्रम पहुंचाना नहीं, बल्कि अपने ही बच्चों के साथ जोडऩा है। वृद्धाश्रम रोटी, कपड़ा और मकान तो दे सकते हैं, लेकिन वह प्यार और एहसास नहीं, जो आपको अपने और आप उनको दे सकते हैं। देश में कई वृद्धाश्रम खुले हुए हैं, लेकिन वृद्धाश्रम सिर्फ उन लोगों के लिए हैं, जिनके आगे पीछे कोई न हो। जैसे कि कंझावला में ओमप्रकाश अग्रवाल ने त्रिवेणी वृद्धाश्रम खोला है, जहां बिल्कुल बेसहारा को ही भेजते हैं। वह नि:स्वार्थ सेवा कर रहे हैं।
क्लब को कोई सरकारी सहायता मिली हो?
अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है। हमने क्लब का कार्य अपने ऑफिस में 7 सदस्यों के साथ शुरू किया था, जिनमें होम मिनिस्ट्री, एल.आई.सी., रेलवे के अतिरिक्त दो बिज़नेस मैन और तीन लेडीज थीं, पर इनकी संख्या बढ़कर 10 हजार से ऊपर हो गई है। सबको मालूम है कि 'पंजाब केसरी' हर आम और खास वर्ग का अखबार है। हमें गर्व है कि इसमें किसी की भावनाओं को स्थान मिलता है। उसी तरह हमारे क्लब के साथ भी खास और आम लोग जुड़े हैं। क्लब के साथ रिटायर्ड ऑफिसर, बिज़नेस मैन और बुद्धिजीवी वर्ग तो जुड़ ही रहे हैं, पर ज़रूरतमंद लोग भी आ रहे हैं। इस क्लब को मेरी सास श्रीमती सुदर्शन चोपड़ा का आर्शीवाद है और पूरा-पूरा सहयोग है। मेरे पति अश्विनी कुमार जी और देवर अरविन्द चोपड़ा समय-समय पर मेरी फाइनेंशियल सहायता करते हैं और सलाह भी देते हैं। आज लोगों के सहयोग से ही इस क्लब की शाखाएं दूसरे प्रदेशों में खुलती जा रही हैं।
क्लब की शुरुआत में किस तरह की चुनौनियों का सामना करना पड़ा? 
वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के गठन के समय बहुत से लोगों ने यह कहते हुए हतोत्साहित किया था कि 'घर में एक बुजुर्ग की देखभाल करना मुश्किल होता है, तो फिर तुम कैसे निभा पाओगी इतनी बड़ी जि़म्मेदारी।' कई सहेलियों ने भी सलाह देते हुए कहा था कि 'बच्चों या कन्याओं से संबन्धित कोई काम करो।' बच्चों के लिए कुछ करने से खुशियां मिलती हैं। उनकी मासूम शरारतें उदास चेहरे पर भी खुशी ला देती हैं और बच्चे आने वाले कल में तुम्हारी ताकत और नवयुवतियों के लिए काम करने से पुण्य मिलेगा। लेकिन मैंने देखा कि बच्चो, नवयुवतियों की देखभाल व संरक्षण के लिए तो पूरा परिवार, रिश्तेदार होते हैं, जबकि ढलते जीवन के उस मोड़ पर बुजुर्गों को किसी की सहानुभूति, हमदर्दी और सहारे की सख्त ज़रूरत होती है। उस समय मुझे लगा कि अगर मैं बुजुर्गों के लिए कुछ कर पायी तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा। 
जिस समय आपके दिन चुनौतीपूर्ण थे, तो उन दिनों आप क्या सोचती थीं?
आप कोई भी रोल निभाओगे, उसमें परेशानी ज़रूर होती है। जब लाला जी शहीद हुए तो मैं पहली बार मां बनने वाली थी। मेरा घर से बाहर निकलना बंद हो गया था। हर समय आतंकवाद का साया सिर पर मंडराता रहता था। मैं और मेरी ननद नीता एक कमरे में डरकर दुबके रहते थे। रमेश जी हमेशा प्यार से मुझे समझाते थे कि जि़न्दगी में डरकर नहीं रहना, जो विधि का विधान है, होकर ही रहेगा। तुम एक निडर परिवार की बहू हो और तुम्हें बहादुर बच्चा पैदा करना है। जब रमेश जी शहीद हुए, मानो हमारे परिवार पर पहाड़ टूट पड़ा। वह समय हमारा एक तरह 'हाउस अरैस्ट' था। अश्विनी जी घर से ही ऑफिस चला रहे थे। बेटे को तीसरी कक्षा तक घर में ही पढ़ाना पड़ा। बहुत मुश्किल लगता था कि बच्चा खुले वातावरण में खेलकर पल-बढ़ नहीं रहा था। आज भी हम सिक्युरिटी के साए में जीते हैं, क्योंकि मेरे पति अश्विनी जी एक निडर, निर्भीक पत्रकार हैं, जिनकी कलम न डरती है, न झुकती है और न ही किसी पार्टी के साथ है। हमेशा से हमारे ने परिवार, देश और आम जनता के हित में कार्य किया है। 
क्लब की विशेषता?
क्लब का हर सदस्य हमारे लिए महत्वपूर्ण है। उनके लिए हमारा यह संदेश होता है कि 'हम किसी से कम नहीं'। हर मंगलवार को बुजुर्ग एक होकर आपस में ही अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ लेते हैं। सब एक-दूसरे का सुख-दुख बांटकर अपने आपको समाज को मज़बूत मानने लगे हैं। वे अपने अनुभव से समाज को कुछ देना चाहते हैं, जो हर सुख से वंचित है तथा समाज और बच्चों से काफी उम्मीद रखते हैं। 
घर-परिवार व बच्चों के साथ-साथ आप इन जि़म्मेदारियों को कैसे मैनेज करती हैं? 
सच कहूं तो कभी-कभी खाने के लिए टाईम नहीं मिल पाता है। कई जि़म्मेदारियां हैं, लेकिन धीरज और धैर्य से सब कुछ संभव है। यह एक ऐसी डगर है, जो बुजुर्गों के आर्शीवाद से, उनकी दुआओं से रास्ता तय करने का साहस कर रही हूं। घर में एक बुजुर्ग को खुश करना, मुश्किल होता है, लेकिन यहां तो करीब 10 हजार से अधिक सदस्य हैं, जिनके हृदय बच्चों से भी ज्यादा कोमल हैं, जिनके लिए हमारे क्लब के कार्यकर्ताओं का पूरा सहयोग है। 
ऐसा लम्हा, जिसे आप याद करना चाहेंगी?
जि़न्दगी का हर लम्हा याद आता है। अच्छे लम्हें कभी भूलना नहीं चाहती हूं। शादी के समय मैं पढ़ रही थी। हमारे और अश्विनी जी के बीच का नोक-झोंक वाला समय काफी अच्छा लगता है, वे दिन बहुत याद आते हैं। घर में बहुत लोग थे और सभी लोग लाला जी की सेवा करते थे। मैं उनकी पौत्र वधू थी, यह उनका मेरे प्रति प्यार था कि वह सुबह की पहली चाय और शाम पांच बजे चाय-पकौड़े मेरे हाथ से लेना पसंद करते थे। 
आप अपनी उपलब्धियों के बारे में क्या कहना चाहेंगी?
मेरी उपलब्धियां तो बुजुर्गों के चेहरों पर मुस्कान लाने के रूप में मेरे और आपके सामने हैं। बहुत अच्छा लगता है कि हमारे क्लब से जुडऩे के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। मैंने जब इस मिशन की शुरुआत की थी तो सोचा था कि यह धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा। उस समय मेरे बच्चे भी छोटे थे। इसके अलावा आतंक का साया भी हमारे परिवार के ऊपर था। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। यह मिशन तेज़ी से आगे बढ़ता जा रहा है। मैं हमेशा कहती हूं कि यह मिशन मैं से नहीं हम से है। समर्पित और अच्छे लोग हमारे साथ होते हैं, तो हमारी हिम्मत और हौंसला और बढ़ता ही है। 
आपको समाज सेवा का इतना लंबा अनुभव है, पीछे मुडकर देखने पर पूरी जि़न्दगी के दौरान कौन सी ऐसी चीज़ है, जो आपको लगता है कि नहीं करनी चाहिए?
मेरे हिसाब से अब तक कोई भी ऐसा काम नहीं किया, क्योंकि कुछ लोग ऐसे हैं, जो कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। मैंने अपने जीवन में दिल की बात सुनी है। किसी बात का दुख नहीं है। 
ईश्वर में आस्था?
मैं शिव जी की पूजा करती हूं। शिव की पूजा करते-करते मैंने अश्विनी जी को पाया है। मुझे गर्व है कि वे मुझे प्यार भी करते हैं और सम्मान भी देते हैं। 
आप अपनी जगह किसी और से बदलना पसंद करेंगी?
बिल्कुल नहीं, मैं पूरी तरह से इन बड़ों की सेवा में समर्पित हूं। इस सेवा कार्य को करने से मुझे बेहद शांति मिलती है। मुझे लगता है कि मैं इसी काम के लिए पैदा हुई हूं। 
हमारे समाज में विशेषकर युवाओं की सोच और परंपराओं में जो परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं, उसके लिए आप जि़म्मेदार किसे मानती हैं?
आजकल टीवी सीरियल और फिल्मों में जो कुछ देखने को मिल रहा है, उसका असर युवाओं पर ज्यादा पड़ा है। लोगों के लिए अच्छी फिल्में और प्रोग्राम्स बनाये जाये, इसके लिए यह ज़रूरी है कि जो हमारे परम्पराएं, संस्कृति और नैतिकता हैं, उसे व्यवहार में लाया जाये। 
आपको फिल्में देखने का शौक है?
बचपन और कॉलेज लाईफ में बहुत फिल्में देखी हैं। अक्सर हम और अश्विनी जी साथ में फिल्में देखने जाये करते थे। एक बार मैं और अश्विनी जी फिल्म देखने चले गये। काफी रात हो गई। घर आते ही लाला जी ने एक दम रौबीली आवाज़ में कहा कि मिन्ना, आ गया वोटी नूं लैके, ऐनी रात नूं। हमारे दोनों के पसीने छूट गये, फिर उन्होंने उसी रौब से कहा, ठीक है - अगे तो ऐनी लेट वोटी नूं लैके नहीं जाना और किरण सवेरे मैनूं चाय टाइम नाल दे दईं। वे इतने सावधान थे कि न कहते हुए भी सब कुछ हमें समझा दिया।
जो महिलाएं समाज सेवा में आना चाहती हैं, किरण चोपड़ा की राय क्या होगी?
पारिवारिक मर्यादाओं में रहकर हर काम को दिल से करें। सच्ची भावना से करें। महिलाओं के अधिकार के लिए कई कानून दिये गये हैं। अगर वे उन अधिकारों का सदुपयोग करें तो उनके करियर और समाज दोनों के लिए बेहतर साबित होगा। 
बुजुर्गों की उम्मीद पर लिखी गई किताब 'आशीर्वाद' की विशेषता ...
आशीर्वाद, बुजुर्गों के जीवन की सच्ची और कड़वी हकीकत को बयां करती है। यह पुस्तक उन लोगों को समर्पित है, जो उम्र के उस पड़ाव पर अकेले रह गए हैं, जहां उन्हें अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी के साथ की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है। यह पुस्तक उन बच्चों को भी समर्पित है, जो अपना कर्तव्य अपने बुजुर्ग मां-बाप के प्रति बखूबी निभा रहे हैं। 
भविष्य में लोगों को आपसे क्या उम्मीद रखनी चाहिए?
आज जिन बुजुर्ग मां-बाप को लगता है कि वे असहाय और अकेले हैं, उन्हें सम्मान और खुशी देने के लिए हम तत्पर हैं। 'वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब' उनमें आत्मविश्वास, मज़बूती और हौंसला हमेशा पैदा करता रहेगा।


श्रीमती किरण चोपड़ा
जन्म : अगस्त, 1958
पति : श्री अश्विनी कुमार (संपादक - 'पंजाब केसरी')
पिता : विष्णू दत्त त्रिखा
माता : स्व. पूर्मिणा देवी
शिक्षा : एम.ए. (राजनीति शास्त्र)
स्थायी निवास : 34, लोधी स्टेट। 




Youngest Women Vice-chancellor of Inida: Dr. Pankaj Mittal

जीवन मात्र जीने के लिये नहीं होता। इसका सही अर्थ तभी समझ में आता है जब कुछ ऐसा किया जाये, जिससे लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आये। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिससे यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। हरियाणा की ठेठ माटी पर सुदूर वीराने में आशा की एक किरण 'भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय' के रूप में जगमगा रही है। यहां लड़कियों को शिक्षा के जरिये उनके जीवन का असली उद्देश्य पूरा करने का मंच प्रदान करने में लगीं विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर डॉ. पंकज मित्तल अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिये तन-मन से समर्पित हैं। 
लक्ष्य नहीं है इस जीवन का, श्रान्त भवन में टिके रहना।
किन्तु, पहुंचना उस मंजिल तक, जिसके आगे राह नहीं॥

सचमुच, ये पंक्तियां वर्तमान में संघर्षशील, सक्षम और सफलता की ओर तेजी से कदम बढ़ाती हुई डॉ. पंकज मित्तल पर पूर्णत: लागू होती हैं। जिन्होंने अपने आत्मविश्वास, सतत प्रयास और मेहनत से अपनी तकदीर ही नहीं बदली है, बल्कि एक आदर्श विश्वविद्यालय के रूप में लड़कियों को एक नायाब तोहफा दिया है, जो आने वाली पीढ़ी का भविष्य संवारता रहेगा। डॉ. पंकज मित्तल के लगन और मेहनत का प्रत्यक्ष गवाह 'भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय' आज उत्तर-भारत के पहले आधुनिक महिला विश्वविद्यालय के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। इस विश्वविद्यालय के निर्माण एवं सतत विकास की कहानी डॉ. पंकज जी के कदम दर कदम आगे बढ़ते करियर की कहानी से अलग नहीं है। हरियाणा राज्य का पिछड़ा इलाका, जहां आज भी महिलाओं को घर की चौखट लांघने और अपनी आवाज़ उठाने की खुली आज़ादी तक नहीं मिल पाती है। ऐसे माहौल में डॉ. मित्तल जी न सिर्फ लड़कियों के बेहतर करियर और उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए विश्वविद्यालय में उच्च गुणवत्ता एवं रोजगारोन्मुख शिक्षा की शुरुआत की, बल्कि पुरुषों के एकाधिकार को खत्म करने की प्रेरणा भी उनके अंदर पैदा की। 



11 दिसंबर, 1963 में दिल्ली के एक साधारण परिवार में पैदा हुईं डॉ.पंकज मित्तल, अपने माता-पिता के प्यार, स्नेह व आशीर्वाद, पति की प्रेरणा और स्वयं की अटूट लगन से आज उस मुकाम पर हैं, जिसकी मिसाल खासकर महिलाओं में बिरले ही देखने को मिलती है। डॉ. पंकज मित्तल कहती हैं कि "'सिम्पल फैमिली, पिता जी स्कूल टीचर, मां हाउस वाइफ और हम तीन भाई-बहन, दिल्ली में रहते थे। मेरी पढ़ाई-लिखाई में माता-पिता  का भरपूर योगदान रहा। 1988 में जब मेरी शादी हुई तो उस समय मेरी पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी। शादी के बाद मेरे पति अनूप जी ने मुझे आगे बढ़ाया। उन्होंने पीएचडी के दौरान थिथिस में मेरी सहायता की। हर मोड़ पर उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया है। ईश्वर की कृपा है कि आज हम इस मुकाम पर हैं।"



बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉ. पंकज मित्तल अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएससी(ऑनर्स), आईएआरआई, नई दिल्ली से सांख्यिकी में एमएससी और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। ...और पीजी डिप्लोमा इन हायर एजुकेशन, इग्नू से पूरा किया। उच्च शिक्षा के बाद आपने सितंबर, 1987 में नेशनल बोर्ड ऑफ एक्जॉमिनेशन, नई दिल्ली में बतौर रिसर्च ऑफिसर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। मई, 1990 में यूजीसी, नई दिल्ली में शिक्षा अधिकारी के रूप में, अक्टूबर, 1994 में उप सचिव और जून 2001 में संयुक्त सचिव के पद पर रहकर अपने हुनर और काम के अंदाज़ से सबको आकर्षित किया। इसके बाद डॉ. पंकज मित्तल ने अपने करियर में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 
मई, 2008 में भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर के पद पर नियुक्ति हुई। जहां वह उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार एवं बेहतर सुझाव के साथ-साथ पॉलिसी प्लानिंग, रिसर्च, फाइनेंस एंड मैनेजमेंट आदि में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। डॉ. पंकज मित्तल के नेतृत्व में इस विश्वविद्यालय ने अपने स्थापना काल की गुरुकुल परंपरा को कायम रखते हुए आधुनिकता को भी अपनाया है। डॉ. मित्तल जी कहती हैं "1936 में भगत फूल सिंह जी द्वारा गुरुकुल शिक्षा के अंतर्गत सिर्फ तीन लड़कियों से यहां शिक्षा की शुरुआत हुई थी। ...और आज यहां लड़कियों की संख्या साढ़े पांच हजार हो गई है। यहां लड़कियों को बेहतर शिक्षा के साथ-साथ सक्षम बनाने के लिए कई वैकल्पिक करियर ओरिएंटेड कोर्स भी शुरू किये गये हैं। यहां हर स्टूडेंट्स केजी से लेकर पीजी एवं पीएचडी की उपाधि प्रदान कर सकता है। आगे वे कहती हैं इस विश्वविद्यालय में स्टूडेंट्स को रहने के लिए 14 हॉस्टल, 150 स्टाप क्वाटर््र एवं गेस्टहाउस, वातानुकूलित संकाय, लाइब्रेरी और व्यक्तित्व विकास के लिए योगाकेंद्र एवं लैंग्वेज लैब भी है।" 
"Empowering Women With Education " के मेनीफेस्टो पर विश्वविद्यालय के विकास कार्य और शिक्षा को बेहतर बनाये रखने के लिए डॉ. पंकज मित्तल ने अपने निर्देशन में कई समितियों का भी गठन किया है। जिनमें कोर्ट, एक्जीक्यूटिव काउंसिल, एकेडमिक काउंसिल, फाइनेंस कमेटी और ग्रेजुएट एवं पोस्टग्रेजुएट के लिए बोर्ड ऑफ स्टडीज आदि प्रमुख हैं। इनकी नेतृत्व क्षमता की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। एक साल के अंदर डॉ. पंकज मित्तल ने अपनी कार्यकुशलता से विश्वविद्यालय को विश्व पटल पर जो पहचान दी है, वह काफी सराहनीय है। शिक्षा-करियर के बीस साल के दौरान डॉ. मित्तल जी देश के विभिन्न प्रांतों और विदेशों में उच्च शिक्षा पर आयोजित कई सम्मेलनों में हिस्सा ले चुकी हैं। थाईलैंड, फिलीपीन्स, साऊथ अफ्रीका, मॉरीशस, हांगकांग और स्पेन आदि देशों में उच्च शिक्षा पर प्रस्तुत इनके दस्तावेज व सुझाव काफी प्रशंसनीय रहा हैं। इनके द्वारा उच्च शिक्षा की गुणवत्ता व सुधार के लिए दिये गये महत्वपूर्ण सुझाव व कार्यों पर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में लेख भी प्रकाशित हो चुके हैं। 
शिक्षा के प्रति समर्पित डॉ. पंकज मित्तल वर्तमान में करियर के साथ-साथ कई उच्च संस्थानों एवं कमेटियों में बतौर सदस्य काम कर रही हैं। वे आज एक सफल प्रशासक, अच्छी पत्नी और ममतामयी मां के किरदार को शानदार ढंग से निभा रही हैं। अपने तमाम व्यस्त कार्यों के बावजूद काम और परिवार को पूरा समय देती हैं। वे कहती हैं कि ''जब मैं विश्वविद्यालय में आती हूं तो घर की बातें-यादें घर पर ही छोड़ देती हूं और जब मैं परिवार के साथ होती हूं तो विश्वविद्यालय को भूल जाती हूं।" 
 यंग वुमेन के रूप में वाइस चांसलर के पद पर काम करना डॉ. मित्तल जी के लिए किसी महत्वपूर्ण उपलब्धि से कम नहीं है। वे कहती हैं कि ''एक नयी यूनिवर्सिटी के लिए हायर एजुकेशन की पॉलिसी प्लानिंग करना और उसे ग्रासरूट लेबल पर इंप्लिमेन्ट करना, किसी चुनौती और उपलब्धि से कम नहीं है।" 
 कड़ी मेहनत और निर्धारित लक्ष्य को सफलता की कुंजी मानने वाली डॉ. पंकज मित्तल का कहना है कि ''अगर इंसान अपना लक्ष्य तय करके कड़ी मेहनत करें तो उसे आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता।" 
निश्चय ही डॉ. पंकज मित्तल के इस जज्बे और उपलब्धि से उन सभी स्टूडेंट्स को प्ररेणा 
मिलेगी, जो शिक्षा को माध्यम बनाकर जीवन की ऊंचाइयों को छूने का हौसला रखते हैं।





व्यक्तिगत परिचय
जन्म : 11 दिसंबर, 1963 (दिल्ली)
पति : अनूप मित्तल (DEAN, KIIT UNIVERSITY) 
माता : श्रीमती शकुंतला गर्ग
पिता : श्री रमेश चंद्र गर्ग