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शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास है प्रीति का मूलमंत्र




समाज का वह तबका जो शोषित, गरीब एवं असहाय है और जो अपने मूल अधिकारों के साथ जीने में असमर्थ है, उनके लिए प्रीति पाटकर की 'प्रेरणा' किसी वरदान से कम नहीं है। मुंबई जैसे शहर में उनके लिए आशा की एक किरण सामाजिक संस्था 'प्रेरणा' के रूप में जगमगा रही है। यहां मानव सेवा कार्य के जरिए व्यावसायिक यौनकर्मियों की दुर्दशा को सुधारने, उनके बच्चों को शिक्षित करने, लड़कियों की अवैध कारोबार को रोकने में लगीं प्रीति पाटकर अपने लक्ष्य के लिए तन-मन से समर्पित हैं।

अनुपम कार्य व सम्मान

सामुदायिक सेवा क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए हाल ही में श्रीमती प्रीति पाटकर (संस्थापक एवं कार्यकारी सचिव, प्रेरणा) को लक्ष्मीपत सिंघानिया आईआईएम लखनऊ की तरफ से 'यंग लीडर पुरस्कार' प्रदान किया गया। इस असाधारण सफलता को प्रीति विनम्रता से स्वीकार करते हुए कहती हैं कि 'मुझे खुशी है यह पुरस्कार पाकर, जिसका पूरा श्रेय मैं उन सभी माताओं को देना चाहूंगी, जिन्होंने निडरता से अपने बच्चों के अधिकार के लिए हमारे साथ मिलकर कदम बढ़ाया और मेरे सभी टीम सदस्य, जो करीब 22 साल से इस मिशन के लिए हमारा साथ अपना पूरा सहयोग दिया है। आगे वे कहती हैं, 'आज मेरे जीवन में जो कुछ परिवर्तन है, वह माता-पिता और पति की प्रेरणा प्रेरणा एवं सहयोग से संभव हुआ है।'

समाज सेवा के स्वतंत्र निर्णय
पुरानी लीक से हटकर नई राह बनाने वाले लोग ही कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते हैं। यह बात प्रीति पाटकर पर पूरी तरह खरी उतरती है। उन्होंने विश्व पटल पर सामाजिक संस्था 'प्रेरणा' के जरिए समाज में जो अनुपम कार्य कर रही हैं वह काफी सराहनीय है। शिक्षा-करियर के दौरान वर्ष 1986-90 मुंबई के कमाठीपुरा में निर्मला निकेतन कॉलेज से प्रीति पाटकर ने समाज सेवा का संकल्प लिया। उन्होंने वर्ष 1986 में सामाजिक संस्था 'प्रेरणा' का गठन कर व्यावसायिक यौनकर्मियों और उनके बच्चों को स्वस्थ्य शिक्षा और शोषण मुक्त जीवन जीने के अधिकार दिलाने की दिशा में कई कदम बढ़ाए हैं। प्रीति कहती हैं, 'मैंने बच्चों के लिए जो कार्य किया या समाज सेवा के लिए जो भी निर्णय लिया वह सटीक रहा है। मैं गर्व महसूस करती हूं कि कुछ लोगों को ही सही, जिनके साथ अन्याय हुआ है, मैंने उनको न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की है।' समाज सेवा और समाज के संबंध में प्रीति कहती हैं कि हम जब तक दूसरे लोगों से समाज को अच्छा बनाने की अपेक्षा करते रहेंगे, तब तक इस समाज का कुछ नहीं होने वाला है। समाज को बेहतर बनाने के लिए हमें खुद कोशिश करनी होगी।

समाज सेवा में चुनौतियां
कहते हैं, सफल इंसान के सामने चुनौतियां कम नहीं होतीं। प्रीति पाटकर भी चुनौतियों को स्वीकार करने के बाद ही सफलता हासिल कीं। उन्होंने रेडलाइट एरिया में रहने वाली महिलाओं और उनके बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बेहतरीन काम किया है। ऐसी महिलाओं को खुद शोषित होने और उनकी बच्चियों को वेश्यावृत्ति की दलदल में जाने से रोका है। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व बेहतर करियर की ओर बढ़ाया है। बकौल प्रीति 'जब हमने वेश्याओं और उनके बच्चों के लिए काम करना शुरू किया तो लोगों ने हमारा मजाक उड़ाया। लोग कहते थे कि आप उनके बच्चों की मदद कर उन्हें और प्रोत्साहन दे रही हैं। पहले इस कार्य के लिए कोर्ई फंड देने के लिए तैयार नहीं था। उनका कहना होता था कि अगर हम पैसे दे रहे हैं, तो क्या आप गारंटी है कि उनके बच्चे अच्छे ही बनेंगे?' आगे वह कहती हैं कि हमारी प्रेरणा ने इन चुनौतियों के सामने आगे बढ़कर काम किया है, इसका परिणाम आपके सामने है।

पढ़ाई से मिला विश्वास
मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली प्रीति पाटकर ने मुंबई के निर्मला निकेतन कॉलेज से समाज सेवा में स्नातक की शिक्षा ली। उसके बाद टीआईएसएस से समाज सेवा में ही स्नातकोत्तर की डिग्री लेकर इस क्षेत्र में अपने नये विचार और कुशलनेतृत्व क्षमता का परिचय दिया है, खासकर महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर। समाज सेवा के अपने बीस साल के अनुभव में प्रीति ने अपने सेवा कार्य से हर किसी को प्रभावित किया है। देश भर में महिला मुद्दों पर आयोजित कार्यक्रमों में वे कई बार हिस्सा ले चुकी हैं। महिलाओं व बच्चों के शोषण व संगठित अपराध के खिलाफ उनके द्वारा प्रस्तुत सुझाव व कार्य देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी चर्चा के विषय बने हैं। बकौल प्रीति 'मैं समाजसेवी हूं और समझती हूं कि हमारे व्यक्तित्व में समाज सेवा बिल्कुल फिट बैठता है। इसलिए मैं समाज सेवा की ओर मुखातिब हुई।' समाज सेवा के इस कार्य के लिए प्रीति, कॉलेज के योगदान को महत्वपूर्ण मानती हैं। वे कहती हैं, 'निर्मला निकेतन कॉलेज ऑफ सोसल वर्क डिपार्टमेंट के सभी लोगों का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मेरे जीवन में काफी महत्वपूर्ण रहा है।'

परिवार ने दी ताकत
बीस साल से समाजसेवा को समर्पित प्रीति पाटकर, आज एक समाज सेवक, प्रशासक, ममतामयी मां और पत्नी के किरदार को बखूबी निभा रही हैं। वह अपनी सफलता के लिए परिवार के योगदान को नहीं भूलती हैं। प्रीति कहती हैं, 'शायद मेरी यह इच्छा, इच्छा ही रह जाती, अगर परिवार का पूरा सपोर्ट नहीं होता। माता-पिता और पति का भरपूर मार्गदर्शन, सहयोग और दोनों बच्चों के प्यार ने हमें हर पल आगे बढ़ाया है।'

स्वयं को बनाया मजबूत
अपने व्यक्तिगत जीवन को काम के साथ-साथ कैसे बैलेंस करें? यह कोई प्रीति से पूछे, जब कभी प्रीति फुर्सत में होती हैं तो वह अपना पूरा समय परिवार के साथ बिताती हैं। वे कहती हैं, 'फुर्सत के क्षण में अपने बच्चों, पति और मां के साथ समय बिताना अच्छा लगता है।' बाकी समय को प्रीति संस्था के कार्यों को पूरा करने और किताबें पढऩे में लगाती हैं। वह फिल्म देखने की शौकिन हैं। जब कभी प्रीति मुश्किल में होती हैं तो आत्मचिंतन, ध्यान और योगा करती हैं। आस्था में वह पूरा विश्वास रखती हैं और दूसरों की सहायता करना अपना सबसे बड़ा धर्म मानती है। प्रीति महत्मा गांधी को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं। बकौल प्रीति 'मैं गांधीजी से बहुत प्रेरित हूं। सोचती हूं कि अकेले गांधीजी देश के लिए इतना बड़ा काम कर सकते हैं तो मैं क्यूं नहीं!'

जीवन की उपलब्धि
अपनी सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास विश्वास और दृढ़ संकल्प से आज प्रीति पाटकर ने उस मंजिल को तय किया है, जहां पहुंचना हर किसी का सपना होता है। वह अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि लोगों की विचारधारा में बदलाव को मानती हैं। प्रीति कहती हैं कि आज राष्टरीय और अंतर्राष्टरीय स्तर पर लोगों ने वेश्यावृत्ति जैसे विषय को महिलाओं का शोषण होना माना है। जहां समाज उनकी तरफ देखना तक पसंद नहीं करता था, आज अंतर्राष्टरीय स्तर पर इस मुद्दे पर चर्चा होती है। आज फंडिंग एजेंसियां इस समाज बेहतरी के लिए आगे आ रही हैं। उनके बच्चों को स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ-साथ अधिकारों के मामले में भी जागरूक करने की दिशा में सहयोग कर रही हैं।

समाज सेवा के मूल मंत्र
सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास, धैर्य और लगन को प्रीति समाजसेवा का मूल मंत्र मानती हैं। वह कहती हैं, 'अगर आप समाज को अच्छा देखना और अच्छा बनाना चाहते हैं तो अपने आस-पास के समाज में भागीदार बनकर बेहरत करने की कोशिश करें। वास्तविक संतुष्टि, शांति और दूसरों के लिए काम करने का आनंद ही कुछ अलग है।'


गुरुवार, 9 सितंबर 2010

जीवन सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी है : डॉ. किरन बेदी


सकारात्मक सोच के साथ जीवन के हर संघर्ष को जीने का हौंसला रखने वालों के लिए हर मुश्किल काम आसान होता है। देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी डॉ. किरन बेदी ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने हर मुश्किल काम को आसान बनाया है। 23 सालों से "नवज्योति इंडिया फाउंडेशन" के बैनर तले डॉ. किरन, नारी सशक्तिकरण का अनुपम अलख जगा रही हैं। एक खास मुलाकात के दौरान डॉ. किरन से हुईं बातचीत के मुख्य अंश...

आप एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने समय से पहले भारतीय नारी के बारे में लोगों की सोच बदली और महिला सशक्तिकरण की प्रतीक बनीं, ये सब कैसे संभव हुआ?
इसका श्रेय मेरे मां-बाप को जाता है। अगर मैंने लोगों की सोच बदली है, तो मेरे मां-बाप की सोच ऐसी थी। मेरे पिता जी का कहना था कि 'तुम अपना जीवन खुद बनाओ, तुम किसी से कम नहीं हो, आसमान अनंत है और पढ़ाई तुम्हारा असली धन है।'  मैं कहूंगी की जैसे पंडित नेहरू की सोच अपने बेटी के लिए समय से आगे थी, वैसे ही मेरे माता-पिता की सोच समय से आगे थी। जब मेरे पिता जी से पूछा गया कि उनकी सोच का प्रभाव कहां से आया था? वे कहते थे कि नेहरू जैसे अपनी बेटी के लिए सोचते थे, मैं भी अपनी बेटियों के लिए उसी तरह सोचता हूं। पिता की तरह हमारी मां की सोच समय से आगे थी। यही वजह है कि मेरी सोच समय से आगे रही।

आपकी संस्था "नवज्योति इंडिया फाउंडेशन" में महिलाओं के आत्मसम्मान व स्वावलंबन के लिए किस तरह का अभियान चलाया जा रहा है?
हमारी संस्था "नवज्योत"  उन महिलाओं के लिए काम करती है, जो अशिक्षित, गरीब, कमजोर, असहाय और पिछड़ी हुई हैं। मानसिक रूप से उनमें आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की कमी है। उनकी काबिलियत को कोई पहचानता नहीं है। हम उन महिलाओं में आत्मसम्मान के साथ-साथ आत्म विश्वास, धन कमाने की क्षमता और काबिलता प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं।

आज हर महिलाओं की अपनी-अपनी समस्याएं हैं, ऐसे में आप उन समस्याओं को हल कैसे करती हैं?
हर एक महिला का अपना घरेलू वातावरण होता है, लेकिन कुछ जरूरतें कॉमन होती हैं। आत्मसम्मान, धन, शांति, शिक्षा सबको चाहिए। ये सब चीजें हम उन्हें देते हैं। इन सब चीजों को व्यवस्थित करने की क्षमता उन्हें हम देते हैं। उसके बाद वह अपनी काबिलियत से समस्या को खुद हल करती हैं। इसके अलावा जिसे हेल्प चाहिए, उनके लिए हमारे फैमिली काउंसिलिंग सेंटर चल रहे हैं। वे परामर्श केंद्र से भी सलाह ले सकती हैं।

वर्तमान में आधुनिकीकरण, नारीवाद और महिला उत्थान जैसी तमाम बातें होती हैं, लेकिन आज महिलाओं की जो स्थिति है, उसके बारे में आपकी क्या राय है?
अंतरराष्टरीय स्तर पर अगर हम भारतीय महिलाओं की स्थिति की तुलना करें तो करीब 70 फीसदी महिलाओं की स्थिति भारत में अच्छी नहीं है। ना तो उनके पास हैल्थ इंश्योरेंस है, बच्चों को पढ़ाने के लिए धन और ना ही उनके पास आज़ादी है।
...तो इसके सुधार के लिए जरूरी उपाय क्या हैं?
इसका समाधान यही है कि आज जो दहेज प्रथाएं चल रही हैं, बंद होनी चाहिए। बेटी को पढ़ा-लिखा कर अपने पांवों पर खड़ा किया जाना चाहिए, ताकि वो अपनी काबिलियत को पहचान सके, खुद निर्णय ले सके और आत्मसम्मान से जी सके।

टीवी शो 'आपकी कचहरी' के जरिए कई लोगों को आपने उनका हक दिलाया है, एक तरह से देखा जाए तो आपने इस शो में अपनी भूमिका अदा कर नारी सशक्तिकरण की अलख जगा रही हैं, आप क्या कहना चाहेंगी?
इसका श्रेय स्टार प्लस को जाता है, उसमें भी उदयशंकर को जाता है, जिन्होंने इस प्रोग्राम के जरिए एक नयी सोच दी। दूसरा श्रेय स्वयं को जाता है कि जब उन्होंने मुझे जज के रूप में सेलेक्ट किया। उन्होंने स्पष्टï कहा कि तुम स्वतंत्र जज बनोगी, हम उसमें कोई दखंलदाजी नहीं करेंगे। उन्होंने मुझे कभी नहीं कहा कि आपको यह बोलना है या यह फैसला करना है। जब हमने निर्णय लिया तो वह बिल्कुल वर्तमान स्थिति के अनुसार लिया, जो होना चाहिए। उसमें कोई एक्टिंग नहीं थी, वह सौ फीसदी सही और नैचुरल था।

बतौर जज की भूमिका का अनुभव कैसा रहा?
इसमें मेरे लिए अनुभव कुछ अलग था। इतना भी अलग नहीं था, क्योंकि मैंने 35 साल ऐसे दफ्तर में बैठकर लोगों की बातें सुनी है। कई बार हमारे पास लोग ग्रुप में होते थे। मेरे लिए यह तो बिल्कुल आसान था। एक डंडा मारा कि कहना मान गये। यह शो बहुत ही यूनिक था। एयरकंडीशन में बैठकर फैसला करना और कोई जोर-शोर नहीं और एक घंटे में केस खत्म।


...तो आपने जज की भूमिका निभा लिया। अगर आपको राजनेता की भूमिका यानी राजनीति में आने का मौका मिले तो क्या...?

नवज्योति कबूल है, समाज सेवा कबूल है, राजनीति कबूल नहीं है।

राजनीति में रहकर भी आप समाज सेवा कर सकती है?
हां, जब मैं समझूंगी की अब मेरे लिए सही समय राजनीति में आकर समाज सेवा करने की तो मैं राजनीति में जाऊंगी, वह भी समाज सेवा के लिए, पॉवर के लिए नहीं।

"नवज्योति इंडिया फाउंडेशन"  के लिए जरिए आप गरीब महिलाओं एवं बच्चों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबन बना रही हैं, इसके अलावा और कोई योजना है?

कई क्षेत्र खुले हुए हैं और हर साल एक नया क्षेत्र खुल रहा है। कैदियों के बच्चों की ट्रेनिंग, हेल्थ केयर सेंटर और नशा मुक्ति का केंद्र भी चल रहे हैं। आज यह 'नवज्योति इंडिया फाउंडेशन, जिसे आप देख रहे हैं, इसके पीछे 365 दिन, 250 लोग, हर रोज़ कड़ी मेहतन करके इस जगह पर पहुंचे हैं। यहां कोई आराम से नहीं बैठता है।

आप अपने जीवन में कई मुकाम हासिल किए हैं और काफी लोकप्रिय भी रही हैं, भविष्य का कोई ऐसा सपना, जिसे पूरा करना बाकी है?
सपने नहीं, इस वक्त मैं हकीकतों में जी रही हूं। मेरी संस्थाएं, जिन्हें अब इंस्टीट्यूशन बनाना है। यही मेरा पैशन है। इसलिए मैं इस संस्था के लिए दिन-रात काम करती हूं, ताकि ये कॉलेज, पॉलिटेक्निक्स और टे्रनिंग इंस्टीट्यूट बन जाएं। गरीब महिलाओं और बच्चों के लिए एक बिजनेशन स्कूल बनाना है, होम केयर को एक प्रोग्राम बनाना है, यही मेरा लक्ष्य है और अब हम उन लक्ष्य पर कदम दर कदम आगे बढ़ रहे हैं।

एक सफल इंसान के पीछे किसी न किसी का हाथ होता है, आप अपनी सफलता के पीछे किसका हाथ मानती हैं?
मेरे सफलता के पीछे बहुत सारे हाथ हैं। परिवार में मेरे मां-बाप, बहन, मेरे पति और ससुराल वालों का पूरा सहयोग रहा है। मुझे लोगों से जितनी इज्जत और प्रेम मिला है, यह सब ईश्वर की कृपा है।

ईश्वर में आस्था!
100 प्रतिशत।

आप बहुमुखी प्रतिभा की धनी और जिंदादिल महिला हैं, अपने इस व्यस्ततम कार्य के साथ-साथ परिवार के लिए कैसे समय निकालती हैं?
हर चीज के लिए समय होता है। उसको आप मैनेज करना सीखते हैं, यही तो लाइफ मैनेजमेंट है। कुछ चीजें आप खुद करते हैं और कुछ चीजें आप करवाते हैं।

जब कभी आप फुर्सत में होती हैं तो क्या करना अच्छा लगता है?
मेरे पास हर चीज समय के लिए है, जो मैं सोचती हूं। कई बार मैं कहती हूं कि आज मेरा जीरो डे है, मुझे आज पढऩा है। किसी से मिलना नहीं, कोई डिस्टर्ब मत करना। यही फुर्सत है और यही मेरी हॉबी भी है।

अंतिम सवाल ...आज भी किरन बेदी में किसी कार्य को करने की उतनी ही ऊर्जा और जज्बा है, इसका रहस्य क्या है?
जब तक जीवन है, किसी लक्ष्य के लिए, किसी काम के लिए और किसी कर्तव्य के लिए है। जीवन नहीं है, तो कुछ भी नहीं। जीवन का मतलब सिर्फ अपने जीने के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी है। इसलिए जब तक जीवन है, ये सब चीजें आपके साथ चलती रहेंगी।





एक परिचय : किरन बेदी

अमृतसर (पंजाब) के एक छोटे से परिवार में 9 जून 1949 को पैदा हुईं किरन बेदी, अपने माता-पिता (प्रकाशलाल और प्रेमलता पेशावरिया) की चार बेटियों में से दूसरी बेटी हैं।

शिक्षा :
प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर के कॉन्वेंट स्कूल में हुई। अंग्रेजी साहित्य में उन्होंने स्नातक शिक्षा (1964-68) शासकीय कन्या महाविद्यालय, अमृतसर से पूरी कर राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर (1968-70) की उपाधि हासिल की। सन् 1988 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून में डिग्री प्राप्त की।
 1993 में उन्होंने राष्टरीय तकनीकी संस्थान, नई दिल्ली से उन्होंने सामाजिक विज्ञान में 'नशाखोरी तथा घरेलू हिंसा' विषय पर शोध करके पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की। सन् 2005 में किरन बेदी को 'डॉक्टर ऑफ लॉ'  की उपाधि से सम्मानित किया गया।


रुचि:
बहुमुखी प्रतिभा की धनी किरन बेदी को बचपन में टेनिस खेल से काफी लगाव रहा है। अपनी बहनों के साथ उन्होंने टेनिस में कई खिताब भी हासिल किए। ऑल इंडिया और ऑल एशियन टेनिस चैंपियनशिप की विजेता भी रहीं किरन बेदी को उस वक्त 'पेशावर बहनों'  के नाम से जाना जाता था।

पदभार
भारतीय पुलिस सेवा में पुलिस महानिदेशक (ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट) के पद पर पहुंचने वाली किरन बेदी एकमात्र पहली भारतीय महिला थीं, जिसे यह गौरव हासिल हुआ।
इसके अलावा किरन, डीआईजी, चंडीगढ़ गवर्नर की सलाहकार, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो में डीआईजी तथा यूनाइटेड नेशन्स में भी कार्य कर चुकी हैं।


उल्लेखनीय कार्य
किरन बेदी, अपने कार्यकाल के दौरान कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जिससे उनकी अलग पहचान प्रसिद्धि मिली है। तिहाड़ जेल में महानिरीक्षक के पद पर रहते हुए किरन ने वहां के कैदियों को सुधारने के लिए एक मिशन चलाया। उन्होंने कैदियों को योग, ध्यान, शिक्षा व संस्कारों का पाठ पढ़ाते हुए उन्होंने तिहाड़ जेल को 'तिहाड़ आश्रम' बनाया।

ट्रैफिक पुलिस कमिश्नर, नई दिल्ली, में रहते हुए किरन बेदी की पहचान 'क्रेन बेदी' के रूप में बनीं। उन्होंने नई दिल्ली में पार्किंग वाइलेशन करने पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गाड़ी को भी नहीं बक्शा।

पुरस्कार :
किरन को उनके उल्लेखनीय सेवाओं के कई राष्टरीय व अंतरराष्टरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें से प्रमुख पुरस्कार प्रेसीडेंट गेलेट्री अवार्ड (1979), वीमेन ऑफ दी ईयर अवार्ड (1980), एशिया रिजन अवार्ड फॉर ड्रग प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (1991), महिला शिरोमणि अवार्ड (1995), फादर मैचिस्मो ह्यूमेटेरियन अवार्ड (1995), प्राइड ऑफ इंडिया (1999) तथा मदर टेरेसा मेमोरियल नेशनल अवार्ड (2005) और 'रोमन मैग्सेसे अवार्ड' (1994) से सम्मानित किया गया।

किरन पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म
मशहूर ऑस्ट्रेलियाई फिल्मकार मेगन डॉनमेन ने किरन जी के जीवन के उतार-चढ़ाव और संघर्षों को एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'यस मैडम, सर' बनायी है। इस फिल्म में मशहूर हॉलीवुड अभिनेत्री हेलेन मिरेन ने सूत्रधार के रूप में अपनी आवाज दी है। इस फिल्म में किरन जी के संपूर्ण जीवन के सभी पहलुओं व अनुभवों को समेटने का प्रयास किया गया है।

समाजसेवा की पहल
किरन बेदी ने अपने शिक्षा-करियर के साथ-साथ सामाजिक सेवा से जुड़ी रही हैं। समाजसेवा में अपनी रुचि को मूर्त रूप प्रदान करते हुए उन्होंने सन् 1987 में "नवज्योति" तथा 1994 में 'इंडिया विजन फाउंडेशन" नामक गैर सरकारी संस्थान की स्थापना की। "नवज्योति इंडिया फाउंडेशन" के बैनर तले, नशाखोरी पर अंकुश लगाकर, गरीब व जरूरतमंद बच्चों, महिलाओं की सहायता कर किरन बेदी ने नारी सशक्तिकरण का अनुपम अलख जगाया है। किरन के इस संस्था को यूनाइटेड नेशन्स की ओर से "सर्ज सॉइटीरॉफ मेमोरियल अवार्ड" से भी नवाजा जा चुका है।
हम सलाम करते हैं डॉ. किरन के नवज्योति को, जिसने हजारों गरीब बेसहारे बच्चों एवं महिलाओं को शिक्षित कर आत्मसम्मान, आत्मबल और स्वरोजगार दिया, उन्हें आत्मसबल बनाया है और उनके मन में जीने की ललक पैदा की है।