श्रान्त भवन में टिके रहना
किन्तु, पहुंचना उस मंजिल तक
जिसके आगे राह नहीं।
सचमुच, ये पक्तियां वर्तमान में संघर्षशील, सक्षम और सफलता की ओर तेजी से कदम बढ़ाती हुईं डॉ. रीना रामाचंद्रन पर चरितार्थ होती है। अपार संभावनाओं की स्वामिनी डॉ. रीना ने परिवार में माता-पिता से प्ररेणा लेते हुए, अपने जीवन को उस मुकाम तक पहुंचाया, जहां उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं है। मशहूर शायर बशीर बद्र ने ठीक ही कहा है-"खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तदबीर से पहले खुदा बंदे से ये पूछे बता तेरी रज़ा क्या है!"जब परिस्थियों ने डॉ. रीना को घर की चौखट से बाहर आने के लिए बाध्य किया तो मर्यादित रहकर संघर्ष करते हुए उन्होंने अपने जीवन में सिर्फ परिवर्तन और मुकाम को स्वीकारा। ...और फिर घर की तमाम जिम्मेदारियों के साथ-साथ अपने करियर में कौशल का परिचय देते हुए, हर स्तर पर अपने को साबित किया। आज डॉ. रीना अपने करियर में जितनी सफल डायरेक्टर के रूप में कार्यरत हैं, उतनी ही अच्छी मां भी हैं। आज की संघर्षशील महिलाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत डॉ. रीना ने अपने करियर के तीस वर्षों में टेक्सटाइल, पेट्रोकेमिकल, केमिस्ट्री और बैंकिंग इंडस्ट्री आदि में उन्होंने बखूबी नाम कमाया है। ...और वर्तमान में जे.के. बिजेनेस स्कूल में डारेक्टर जनरल के रूप में कार्यरत भी हैं।
अपनी इस उपलब्धि के बारे में डॉ. रीना रामचंद्रन क्या कहती हैं, आइये जानते हैं...
आप कई बड़ी कंपनियों में डारेक्टर की सराहनीय भूमिका निभा चुकीं हैं ...और आपकी एक अलग पहचान भी है, लेकिन करियर के साथ-साथ आप परिवार को किस तरह से मैंनेज करती हैं?
मैंने अपने जीवन में शुरू से ही शिक्षा और करियर को पहली प्राथमिकता दी, ...और परिवार का माहौल इतना संतुलित था कि स्वयं परिवार की जिम्मेदारी समझ में आने लगी। पढ़ाई और जॉब के साथ-साथ घर का पूरा काम किया करती थी। सन् 1961 में शादी के बाद, जहां-जहां मेरे पति का तबादला हुआ, वहीं पर मैंने अपनी नौकरी भी की...और काम व अनुभव के आधार पर मैं अपने करियर और कंपनी को बदलती रही हूं।
आपके करियर में परिवार का योगदान...?
मैं अपने परिवार में चार बहनों में सबसे बड़ी हूं। मुझे मां की ममता और पिता का सहयोग हमेशा मिलता रहा। उन्होंने मेरी परवरिश में पूरा ख्याल रखा है। खासकर मां, जिन्होंने शादी के बाद भी पिता के सहयोग से अपनी पढ़ाई पूरी की। मां की ममता और शिक्षा से प्ररेणा लेकर मैंने पूरी निष्ठïा और लगन के साथ अपने करियर को आगे बढ़ाया। हमारे घर का माहौल दूसरे घरों से काफी अलग था, परिवार में लड़ाई-झगड़े का नामोनिशान नहीं था। घर की शांति, सौहाद्र और पति का सहयोग भी महत्वपूर्ण रहा है। मेरी आस-पड़ोस की बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं होता था, सिवाए अपने करियर को छोड़कर। शादी के बाद भी करियर में किसी तरह की रूकावट नहीं आई। जैसे-जैसे शिक्षा और करियर में कदम आगे बढ़ते गए, सभी चीजें अपने आप अनुकूल होती चलीं गईं।
जिस समय महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ी हुई थीं, आप उस वक्त में फ्रांस जाकर फ्रेंच भाषा में डिप्लोमा किया, आपके विदेश जाने और दूसरी भाषा सिखने का अनुभव कैसा रहा?
हमारे देश के लिए यह गौरव की बात है कि उस समय में एक हिन्दुस्तानी महिला विदेश जाकर दूसरी भाषा में डिप्लोमा हासिल किया। मुझे केमेस्ट्रि से डायरेक्ट्रेट की उपाधि लेकर अपने करियर में एक नई उपब्धि को जोडऩा था। मैंने स्कॉलरशिप से फ्रांस जाकर यह महसूस किया कि शिक्षा के क्षेत्र में हमारे देश की महिलाएं फ्रांस की तुलना में वक्त से कहीं काफी पीछे हैं। उस समय वहां की महिलाओं का विकास, वर्तमान में महिलाओं के विकास के बराबर जैसा था।
वर्तमान समय में महिलाओं के लिए मैंनेजमेंट क्षेत्र में कितनी चुनौतियां हैं?
आज किसी भी क्षेत्र में मुकाम हासिल करना महिलाओं के लिए कठिन नहीं है, बशर्ते वे अपने करियर को उस मुकाम को पाने के लिए केंद्रित करें। महिला व पुरुष दोनों समान हैं, महिलाएं अपने महिला होने का फायदा न उठाएं, बल्कि अपने काम को पूरी लगन और निष्ठïा के साथ करें। जितना संभव हो सके काम के समय काम का और परिवार के समय परिवार का ध्यान रखें।
आपकी करियर और उपलब्धियों से जुड़ी यादगार पल ....!
मैंने अपने करियर के तीस वर्षों में टेक्सटाइल, पेट्रोकेमिकल, सिमेंट, केमिस्ट्री और बैंकिंग आदि इंडस्ट्री में डारेक्टर के रूप में बखूबी काम किया। लगभग 9 वर्ष तक नेचुरल प्रोडक्ट केमेस्ट्री और फिजिकल ऑरगेनिक केमेस्ट्री में शोध के रूप में काम किया। मैंने अपने जीवन की यादगार पल रिसर्च में व्यतीत की है। शोध के दौरान मेरे जीवन और करियर का सबसे महत्वपूर्ण समय रहा है। इसके अलावा सन् 1994 में आईआईटी कानपुर में "बोर्ड ऑफ गवर्नेंस" में सदस्य के रूप में मेरी नियुक्त की गईं। सन् 1998 में सीएसआईआर में तीन साल के लिए सदस्य के रूप में नामंकित किया गया और सन् 1990 में फिल्म सेंसर बोर्ड़ टीम की सदस्य के रूप में चुनी गई। सन् 2000 में मिनिस्ट्री ऑफ ह्यïूमन रिसोर्स में ऐजुकेशन मैनेजमेंट में काम करने का काफी अच्छा अनुभव रहा है। मैंने इन सबके बावजूद करियर में वूमेन इन पब्लिक सेक्टर, फास्फोरस लिमिटेड, भारतीय रिर्जव बैंक, नैक, यूजीसी आदि बड़ी संस्थाओं में अपने दिशा निर्देशन से उनका मार्ग दर्शन करती रहीं हूं।
क्या महिलाओं के लिए वर्तमान समय में महिला होने का ग्रांटेड लेना उचित है?
हमारे देश की प्रत्येक महिला चाहे वह शहर की हो या फिर गांव की, सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकतीं हैं, बशर्तें उनके अंदर जीवन में कुछ करने की चाह हो। अपना खुद मुकाम तय करें! दूसरी बात हमारे देश में कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं, जो असफल होने पर परिवार या रिश्तों को जिम्मेदार ठहराती हैं। अगर, वे महिलाएं अपने करियर पर केंद्रित होकर काम करें तो शायद ही उन्हें परिवारिक रिश्तों की रूकावट से रूबरू होना पड़े। आज की कुछ महिलाओं के अंदर एक कमजोर पक्ष यानी महिला होने का फायदा चाहती हैं, जो उन्हें आत्मनिर्भर नहीं बनने देती हैं। ...और वे महिलाएं जीवन भर करियर और परिवार की कसमकश जीवन में फंसी रहती हैं। इसलिए उन्हें सबसे पहले आत्म निर्भर बनना होगा, ताकि अपना निर्णय वे खुद ले सकें और अपने करियर को बेहतर बनाने के लिए जीवन के हर पहलू को अधिक से अधिक महत्वपूर्ण बनाएं।
EDUCATION
AWARD'S
EDUCATION
डॉ. रीना ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कानपुर के बालिका विद्या मंदिर से पूरी की। इसके बाद आपने डी.ए.वी.कॉलेज से स्नातक (विज्ञान विषय), 1963 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमएससी (रसायन विज्ञान) एवं 1967 में पीएचडी (रसायन विज्ञान) और फ्रांस से केमेस्ट्री में डाक्टरेट की उपाधि हासिल कीं हैं। साथ ही आपने फैंच भाषा में डिप्लोमा भी किया।
AWARD'S
सर्वप्रथम आपको सन् 1989 में उपराष्टïरपति द्वारा "महिला शिरोमणि की उपाधि" एवं प्रेस काउंसिल की तरफ से "बेस्ट कम्युनिकेटर-1989" के खिताब से नवाजा गया। इसके बाद ऑयल एवं नेचूरल गैस कमिशन की तरफ से "मैनेजर ऑफ द ईयर-1987" और आईबीपीएल ऊर्जा रिर्सच फाउंडेशन द्वारा "एनर्जी ऑफ द ईयर- 1997" से सम्मानित किया गया ।
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