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गुरुवार, 18 मार्च 2010

बेबाक लेखनी और वाकपटुता की धनी : मुनव्वर सुल्ताना

आज की नारी न सिर्फ घर-परिवार और समाज में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं, बल्कि स्वयं के सपनों पर फैसले लेने और आर्थिक आज़ादी हासिल करने, अपने अधिकारों के लिए लडऩे और आत्मनिर्भर होने पर केंद्रित हैं। यह सच भी है कि जिन घरों में लड़कियां आत्मनिर्भर हो रही हैं, वहां समाज का स्तर और लड़कियों की जिंदगी में मूलभूत परिवर्तन देखने को मिल रहा है। वे दशकों पहले की तरह खिड़कियों के सामने बैठकर आसमान को पास आने का इंतजार नहीं करती हैं, बल्कि वे बाहर निकलकर आसमान को अपनी मुट्ठी में भरने की कोशिश में लगी हैं।
हम यहां बात कर रहे हैं दुनिया की पहली महिला उर्दू ब्लॉगर मुनव्वर सुल्ताना की, जिन्होंने अपनी बेबाक लेखनी और वाकपटुता के चलते समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और धार्मिक कर्मकांडों की पोल खोल रही हैं। ...और साथ ही साथ सामाजिक/शैक्षणिक जागरूकता एवं महिला सशक्तिकरण के लिए मजबूत संगठन बनाकर समाजसेवा कार्य में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रही हैं।
पुणे शहर में निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी मुनव्वर सुल्ताना जी बचपन से प्रतिभा की धनी रही हैं। उनका बचपन घर के पास एटॉमिक रिसर्च सेंटर, आर.के. स्टूडियो, डायमंड गार्डन के आस-पास खेलते हुए और वहां लगी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की मूर्ति से मुखातिब होते हुये बीता। माता-पिता के लाड़-प्यार और मैमूना बेगम (नानी) के स्नेह एवं सहयोग से सुल्ताना जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर के पास प्राथमिक पाठशाला से पूरी की। इसके बाद फिल्म अभिनेत्री स्वर्गीय ललिता पवार और स्वर्गीय माता मुमताज बेगम की स्नेह से उन्होंने उच्च शिक्षा (एम.ए., बी.एड (उर्दू) पूरी करने के बाद 'अंजुमन-ए-इस्लाम जुबैदा तालिब' स्कूल में बतौर शिक्षिका से अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने खुद को बचपन से ही साधारण मुस्लिम लड़की की तरह काले बुरक़े के जिरह बख्तर में कैद न होकर अपने को आज़ाद रखा। अपनी कार्यकुशलता के चलते उन्होंने अपने घर-परिवार के साथ-साथ प्रोफेशन को बखूबी निभा रही हैं। स्वयं मुनव्वर सुल्ताना कहती हैं कि 'मेरा स्कूल और मेरे बच्चें दोनों ही मेरा घर-परिवार है। मेरे परिवार और ब्लॉग के पथप्रदर्शक डॉ. रूपेश श्रीवास्तव का यह सहयोग है कि मैं आज इस मुकाम पर हूं।'
सुल्ताना जी अपने उर्दू ब्लॉग लंतरानी (http://merilantrani.blogspot.com) के माध्यम से उन सभी मुस्लिम औरतों को उनकी सामाजिक एवं पारिवारिक उत्तरदायित्वों के बारे में इंटरनेट के माध्यम से शिक्षित करने में लगी हैं, जो आज भी अंधविश्वासों और सामाजिक बंधनों में बंधी हुई हैं। वे कहती हैं कि 'मुझे खुशी होती हैं जब कोई हमारे द्वारा लिखे गये लेख पर बेबाक टिप्पणी करते हुये हमें धन्यवाद देता है। मैं उन लोगों का शुक्रगुजार हूं कि जो महिलाओं पर थोपे गये सामाजिक बंधनों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना चाहते हैं।'
'महाराष्ट्र राज्य पाठ्य पुस्तक निर्मित व अभ्यासक्रम संशोधन मंडल' की सम्मानित सहयोगी के रूप में कार्यरत सुल्ताना जी के राज्य में पाठ्यपुस्तकों के संशोधन सत्र में दिये गये सुझाव एवं योगदान महत्वपूर्ण रहे हैं। उनके देश और विदेश में आयोजित संगोष्ठिïयों में उर्दू व इंटरनेट विषय पर दिये गये सुझाव और कार्य काफी प्रशंसनीय रहे हैं।
वे कहती हैं कि 'मैं पहले यही सोचती थी कि मेरे जैसे लाखों की संख्या में लोग उर्दू में नस्तालिक लिपि में ब्लॉगिंग कर रहे होंगे। अपने देश में नहीं तो अन्य देशों में कोई महिला उर्दू ब्लॉगर जरूर होगी। जब इंटरनेट खंगाला तो नस्तालिक लिपि में कोई महिला ब्लॉगर नहीं मिला। मुझे खुशी इस बात की है कि मैं एशिया में ही नहीं, बल्कि दुनिया की पहली महिला उर्दू (नस्तालिक लिपि) ब्लॉगर हूं। आगे उन्होंने बताया कि हाल ही में लाहौर में पाकिस्तानी फीमेल ब्लॉगर्स एसोसिएशन का अधिवेशन हुआ। संस्था की अध्यक्षा साइमा मोहसिन(डान टी.वी.), सबा इम्तियाज़ (Erase and rewind), हुमा इम्तियाज़ (The world has stopped spinning), ताज़ीन जावेद (A reluctant mind)आदि ब्लॉगरों से यह पता चला कि नस्तालिक लिपि में ब्लॉगिंग एक अड़चन भरा चुनौतीपूर्ण कार्य है। अपने ब्लॉग की बारे में सुल्ताना कहती हैं कि 'मेरे ब्लाग "लंतरानी" की विषय वस्तु सामाजिक एवं शैक्षणिक है। इस पर हिंदी और अंग्रेजी जानने वालों के लिये उर्दू भाषा व नस्तालिक लिपि सिखाने के वीडियो ट्यूटोरियल्स भी शुरू कर चुकी हूं।
ब्लॉग पर वीडियो ट्यूटोरियल्स के रिजेल्ट पर खुशी इज़हार करते हुये कहती हैं कि 'भविष्य में उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी के बीच में अपने ब्लॉग के माध्यम से एक ऐसा पुल बना पाऊंगी, जो भावनात्मक दरारों को पाट सकेगा।' "महिलाओं के सामने आज कई चुनौतियां हैं, जिसका वे डटकर सामना कर रही हैं। मुझे खुशी हैं कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं। महिलाएं अपने अधिकार को जाना-पहचाना है।"

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